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Blog – Indore Samachar https://indoresamachar.net Indore's No.1 News Paper Wed, 13 Dec 2023 16:49:31 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.2 https://indoresamachar.net/wp-content/uploads/2021/10/cropped-FAVICON-32x32.png Blog – Indore Samachar https://indoresamachar.net 32 32 व्यंग्य लिखना छोड़िए,  ठंड में पकौड़े तालिए  https://indoresamachar.net/?p=185316 Wed, 13 Dec 2023 16:49:30 +0000 https://indoresamachar.net/?p=185316 अजी ! सुनते हो, जी देवि जी ! बोलिए। दूधवाला आया था सुबह-सुबह धमकी देकर गया है, उसका तीन महींने का बकाया है। कल से से दूध बंद और चाय को भी तरसोंगे। नगर निगम से जलकर वालों ने नोटिस भेजा है उसका छह माह का बकाया है। मकान मालिक ने भी कमरा छोड़ने का अल्टीमेटम दिया है। बच्चे स्कूल से लौट आएं हैं। टीचर ने कहा है कि क्लास टेस्टिंग का वक्त बीत गया। मम्मी-पापा से बोलों कल पचास हजार के साथ सारे डाकूमेंट लेकर आएं और एडमिशन करा लें, वरना कल से स्कूलमत आना। बिजली वाले ने बिल भुगतान न होने पर कनेक्शन काट दिया है। जनाब अब अंधेरे में साहित्य साधना करनी होगी। समझे, पूरे लाख का बजट है और जेब में धेला भी नहीं है। आएं हैं बड़े साहित्यकार बनने। सौ में से अस्सी जगह से रचनाएं संपादक सखेद लौटा देते हैं, उपर से मुफत में धन्यवाद और सहयोग बनाए रखने की अपील भी करते हैं।

श्रीमती बेलनवाली की चूड़िया बार-बार मुझ पर बेलन तानते हुए खनक रही थी। हमने सोचा इसी लय को क्यों न काव्य रचना का आधार बना डालें, लेकिन वह थमने वाली कहां थी। श्रीमान ! आप तो पूरे निठल्ले हो। तुमसे भले तो दलाल हैं जिनके नाम पर दलाल स्ट्रीट बन गई है। देश बदल रहा है, लेकिन लल्लू लाल बदलने से रहे। दिन-रात कम्प्युटर बाबा के साथ बंद कमरे में साहित्य साधना करते रहते हैं। मौसम का मिजाज देख बदलना सीखो। जमाना प्रयोगवादी है।

मेरी मनवा की मान जा। साहित्य का नोबल लेने की जिद छोड़। नगर निगम से थोड़ा जुगाड़ भिड़ाओ। चौराहे पर उ खाली पड़ी जमीन पर पकौड़े की दुकान कर लो। ठंड का मौसम है, समय की नजाकत को देख इसकी शुवात कर लो। बस ! दुकान का शुभारंभ पकौड़ा तलने का मंत्र देने वालों से करवा लो। फिर मीडिया वालों का कैमरे चमकेगा। एक न्यू आइडिया आएगा। अपनी बेगारी दूर हो जाएगी। बेलनवाली की बात जम गई। कहते हैं कि वक्त बदलते देर नहीं लगती। हमारी दुकान चल निकली। आज शहर के नामी गिरामी लोेग आते हैं। सोसायटी में मेरी अलग छबि बन गयी है। किट्टी पार्टी में बेलनवाली के बेलन का जलवा है। शहर के नामी गिरामी साहित्यकार चाय और पकौड़े का लुत्फ उठाने आते हैं।

प्रभुनाथ शुक्ल

(बरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक )

ग्राम: हरीपुर, पत्रालय: अभिया

जिला : भदोही, (उप्र)

पिन : 221404

Email Id: pnshukla6@gmail.com

संपर्क : 8924005444/ 9450254645

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“हम सब गांधीजी के तीन बंदर है “ https://indoresamachar.net/?p=170566 Mon, 22 May 2023 04:20:31 +0000 https://indoresamachar.net/?p=170566 भ्रम की क्षितिज पर खड़े ज़िंदगी ढ़ो रहे है। जीनी है गर ज़िंदगी शान से तो सवाल पूछने के लिए मुँह खोलना होगा, अन्याय देखने के लिए आँखें चौड़ी करनी होगी और सच सुनने के लिए कानों को सतेज करना होगा!

जो हम में से कोई हिम्मत नहीं करेगा। जब तक आग हमारी दहलीज़ को नहीं छू रही हमें क्या? हम तो सलामत है! यही मानसिकता इंसानियत को ले डूबी और विद्रोही सोच को अपाहिज कर दिया। हम डरपोक है, कायर है, कठपुतलियाँ है।

जनता को हिन्दुत्व और सनातन धर्म से सच में प्रेम है ये तो नहीं पता, शायद भगवान के नाम का ख़ौफ़ है! तभी धर्म के नाम पर हम से कोई कुछ भी करवा ले हम यंत्रवत कर जाएँगे, बिना ये सोचे कि समाज के लिए हितकर है या नहीं।

पर दूसरे अहम् मुद्दों से पल्ला झाड़ लेंगे। 

अच्छी बात है हम अंग्रेजों की गुलामी वाले दौर में पैदा नहीं हुए, अंधे, बहरे, गूँगे क्या ख़ाक़ आज़ादी दिलवाते। गनीमत है 75 सालों पहले बहादुर वीरों ने अपनी जान की कुर्बानियां देकर देश को मुक्त करवाया। आज की पीढ़ी जहाँ देश के मुद्दों को नज़र अंदाज़ करते पीठ दिखाकर भाग रही है वह क्या लड़ती अंग्रेजों की कूटनीति के आगे। यही हाल होता, और सब चुप है तो हमें क्या। कोई किसी भी मुद्दे को छेड़ कर अपनी ऊँगली जलाना नहीं चाहता। पत्रकार और लेखक अगर सरकार या तंत्र विरुद्ध कुछ लिखने की हिम्मत करते है, तो डरा धमका कर चुप करवा दिया जाता है। जनता को एक होकर हर मुद्दों पर सवाल उठाते अपने हक और अधिकार के लिए आवाज़ उठानी चाहिए।

अंधेर नगरी चौपट राजा सा हाल है। सामाजिक सैंकडों मुद्दें शिकारी जानवर की तरह मुँह फाड़े खड़े है! पुलिस, प्रशासन, सरकारी अफ़सर कछुए की चाल से काम कर रहे है। कुछ मुद्दों को राजकीय दबाव, या गुंडों की धमकी से डरकर दबा दिए जाते है। हर कोई होता है, चलता की सोच लिए अपने आप में व्यस्त और मस्त है। 

आलसी जनता… ये समय चुप रहने का नहीं, मृत पड़ी मानवीय संवेदनाओं को जगाने का समय है। धृतराष्ट्र बने रहेंगे तो मानवीय सियासत का पतन निश्चित है। नतमस्तक बन हम ये कैसे समाज में जी रहे है? जब भी सोचते है हमारे आस-पास हो रही घटनाओं के बारे में तब आहत होते मन चित्कार कर उठता है आख़िर कब तक? कहाँ जाकर रुकेगी ये दिल को झकझोरने वाली आँधियां। इंसानी दिमाग साज़िशो की फ़ैक्ट्री होता जा रहा है।  एक दूसरे को गिराने में, लूटने में माहिर होते जा रहे है। इन सारी घटनाओं की कौनसी परिधि आख़री होगी। इस धुआँधार बहते मुसलसल अपराधों के किनारे तो होते होंगे की नहीं ? हम सब ये सोचते तो है पर मौन रहते है। तमाशबीनों का देश नूराकुश्ती करता रहेगा। सियासत में माखौल के प्रयोग किए जा रहे है। एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ में सियासी स्तर तू-तू मैं-मैं की शतरंजी चाल चलते इतना गिर रहा है की आम इंसान हतप्रभ है। अपने ही चुने हुए बाशिंदे उन्हें नौच खा रहे है।

“हर क्षेत्र में नकारात्मकता हावी हो गई है” लोकतंत्र में जनादेश सर्वोपरि है पर यहाँ कटुता और द्वेष की राजनीति में आम जनता पिस रही है, पर आवाज़ उठाने की हिम्मत नहीं कर रही।

“लकवाग्रस्त समाज लग रहा है” खोखले दावे ओर झूठे वचनों से भरमाते सब अंधियारे कुएँ में कूद रहे है। सब पारदर्शी समाज की आस में तो बैठे है पर हिम्मत नहीं, विद्रोह की शुरुआत कौन करें? सबको अपनी ऊँगलियाँ बचानी है कौन आग में हाथ डालकर पोरें जलाना चाहेगा। कब तक आँखों में नश्तर से चुभते द्रश्य देखने पडेंगे। ज़हरिली घटनाओं के मलबे से कौन निकालेगा उर्जा सभर झिलमिलाता सूर्य। कौन रक्त रंजित धरती को मुक्त कराएगा? संकीर्ण मानसिकता वाले दरिंदे घुटनों तक सन गए है। इस गहनतम पीड़ा सभर ये जो समाज दिख रहा है, उससे से निजात पाने कोई क्यूँ छटपटा नहीं रहे।

कोई तो दहाड़ लगाओ, कोई तो सोए हुओं को जगाओ। अभी कितने दशक बिताने होंगे यूँही गुमसुम से देखते हुए जलते समाज को। चलो मिलकर खुद को मुखर कर लें एक जेहाद ये भी जगा ले अन्याय के ख़िलाफ़ मुहिम चलाएँ।।

भावना ठाकर ‘भावु’ बेंगलोर

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“प्यार की नींव पर ही ज़िंदगी थमी है” https://indoresamachar.net/?p=164690 Sat, 25 Feb 2023 17:01:20 +0000 https://indoresamachar.net/?p=164690 आजकल एक फैशन चला है, कुछ खास दिवस मनाने का। कुछ तारीखों में बाँट दिए है एहसासों को। हम इंसान मौजूदा दौर की भागदौड़ी से भरी व्यस्त ज़िंदगी में से कुछ पल चुराकर अपनों के प्रति प्यार और अपनापन जताना भूलते जा रहे है, उसमें ये खास दिन हमें याद दिलाते है कि हमारे अपना भी कोई है। और हम उन खास दिनों पर अपनों के प्रति सौहार्द भाव जताकर खुशियाँ मनाते है, तो क्या गलत है? पर इन मातृदिवस, पिता दिवस, मित्रता दिवस या फिर वैलेन्टाइन दिवस या बहुत सारे खास दिवस मनाने पर कई सारे लोगों को ऐतराज़ होता है। उनको ये सब पाश्चात्य संस्कृति या चोंचले लगते है। और कई लोगों का मानना होता है कि एक दिवस काफ़ी नहीं होता, माता-पिता या किसीके भी लिए यूँ शब्दों के ज़रिए, कार्ड देकर या पोस्ट डालकर जता देना। क्यूँकि उनका अहसान या ऋण एक दिन प्यार जता कर और संवेदना जता कर नहीं उतार सकते। 

कई सारे लोगों को वेलेंटाइन डे मनाने पर भी ऐतराज़ होता है, क्यूँ भई क्या गलत है इसमें। आशिक महबूब के प्रति या पति-पत्नी एक दूसरे के प्रति अगर उस दिन अपनी चाहत का इज़हार करते है तो इसमें बुराई क्या है? क्या हम हर रोज़ दिन में पचास बार बोलते है आई लव यू? इस एक दिन भावों को प्रदर्शित करना बंधन को और मजबूत बनाता है। या जो हम प्रेक्टिकली कर नहीं सकते, या कह नहीं सकते उसे लिखकर, फूल देकर या चॉकलेट देकर जता लेते है तो ये एक दिन तो बहुत ही खास होना चाहिए न।

मानां कि जिसने आपको पूरी उम्र दी हो उनके लिए एक दिन दिखावा करना काफ़ी नहीं होता। पर ये सारे दिन भले पाश्चात्य संस्कृति की देन हो पर सच कहे तो ये परंपरा बहुत सुंदर और समझने वाली है। 

हमारे अपनें हमारे लिए ताउम्र कितना कुछ करते है, क्या हम हर रोज़ बात-बात पर उनको थैंक्स या धन्यवाद बोलते है? या बात-बात पर बहुत अच्छा किया जो आपने मेरे लिए ये किया, नहीं ना? तो ये सारे खास दिन अपनों के प्रति अहोभाव या कृतघ्नता जताने के दिवस होते है। इन खास दिनों पर माँ-बाप और किसीके भी प्रति हम आदर और भावना व्यक्त करते उन्हें स्पेशल फ़ील करवाके ये जता रहे होते है कि उनका हमारी ज़िंदगी में क्या और कितना महत्व है। या हमारी नज़रों में उनके कार्यों की कितनी अहमियत है। भले हम हर रोज़ नहीं जताते पर आप है तो मैं हूँ, या आपने मेरे लिए जो किया या करते हो उसका मुझे बखूबी ज्ञात है, और उन सारे अहसानों का ऋण मैं भले चुका न पाऊँ पर शब्दों के ज़रिए, कार्ड देकर या पोस्ट ड़ालकर अपनी भावनाओं द्वारा आपके प्रति अपना ऋण अदा करता या करती हूँ। सच मानिये सामने वाले को बहुत अच्छा लगता है। लगता है कि उनका अपनों के लिए कुछ करना सार्थक रहा। हर किसीको जब अपने काम की कद्र होती है तब गर्व महसूस होता है। तो बस ये सारे खास दिवस जन्मदिन, लग्नदिन या ऐसे किसी भी खास दिन की तरह ही अपनों के प्रति कृतघ्नता जताने के लिए होते है। इन दिनों को जश्न की तरह मनाना चाहिए ये सारे दिन है तो जीवन में खुशियाँ है। यही सारे दिन अपनेपन और परिवार का महत्व समझाते है।

तो इस वैलेन्टाइन डे पर किसीको भी अपना वैलेन्टाइन बनाकर मन में छुपे भावों की गठरी खोल दीजिए और जमकर मनाईये वैलेन्टाइन डे। प्यार जताना ज़िंदगी में ज़ायके का तड़का लगा देता है। सच मानिए प्यार की नींव पर ही ज़िंदगी थमी है। 

भावना ठाकर ‘भावु’ बेंगलोर

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*हम तकनालॉजी के पीछे क्यों नही?* https://indoresamachar.net/?p=163346 Sat, 04 Feb 2023 09:51:11 +0000 https://indoresamachar.net/?p=163346 माइक्रोसॉफ्ट के भारतीय चीफ ने 10 साल की मेहनत से गूगल जैसी कम्पनी और सर्च इंजन को पछाड़ने का असम्भव सा कारनामा चैटबोट के रूप में कर दिखाया। 

गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन जैसी कम्पनियां रात दिन तकनीकी के क्षेत्र में धमाल मचा रही है।

हमारे यहां आरक्षण में प्रतिभाओं को मारने का सिलसिला पिछले 75 सालों से अनवरत जारी है। हर सरकार ने आज तक देश की प्रगति से ऊपर इस नासूर को जिंदा रखा और वोट बैंक के लिए प्रयोग करा।

और धार्मिक उन्माद, कट्टरता, जातिवाद को बढ़ावा दिया गया किसी न किसी रूप में और असंख्य कानून कायदे, व्यर्थ की औपचारिकताओं में काम काजी जनता को उलझाए रखा। मैत्री और सहयोग की जगह भय और अविश्वास का माहौल बनाये रखा जिससे अपेक्षित ग्रोथ जो ये देश डिजर्व करता था उससे आज तक वंचित रखा। कई देश बर्बाद हो गए जिन्होंने तकनालाजी और अर्थव्यवस्था को दरकिनार कर सत्ता लाभ के लिए जनता को अनुत्पादक बातों में उलझा कर देश को गर्त में पहुंचा दिया।

चीन, जर्मनी और जापान ने तकनोलॉजी में सबको पछाड़ दिया क्योंकि उन्होंने फालतू के दूसरे मुद्दों पर कभी ध्यान नही दिया। आज हमारे देश में चीन के पुरजोर विरोध के बावजूद मौजूदा साल में चीन से आयात बढ़ता जा रहा है। क्योंकी हम तकनीकी को बढ़ावा देने, व्यवसाय जगत पर भरोसा करने, असंख्य कानून कायदे को हटाकर सहयोग का माहौल देने में असफल रहने के साथ साथ धार्मिक कट्टरता, उन्माद , जातिवाद को बढ़ावा देने में पूरी तरह लगे हुए है ।

कर कानूनों के लिए 3 लाख से ज्यादा कर्मचारियों की भर्ती पिछले कुछ सालों में की गई । अगर  यही भर्ती तकनालोजी के क्षेत्र में करते तो हम कहां के कहां पहुंच सकते थे। हमारी प्रतिभाओं का फायदा विदेशियों ने उठाया।

यहां कोई राजनीति पार्टी दूध की धुली नही है। हमाम में सब नँगे है। वोट बैंक की महत्ता हमेशा देश की प्रगति के ऊपर हावी रही।

कल को हमारी आने वाली पीढ़ी हमसे पूछेगी की जब तकनीकी, अर्थव्यवस्था और व्यापार व्यवसाय को बढाने के अवसर मौजूद थे, देश मे हर तरह के संसाधन थे, योग्यता की भरमार थी तब आपने 22वी सदी की बजाय 12 सदी का उल्टा सफर तय करना क्यों पसंद करा तब क्या जवाब देंगे ? 

….डॉ. संजय बिन्दल

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अब ज़रूर सोचे जनता जनार्दन https://indoresamachar.net/?p=162135 Fri, 20 Jan 2023 09:56:42 +0000 https://indoresamachar.net/?p=162135         महज दो-चार सौ रुपल्ली के किराए वाले फ़र्श और हज़ार पांच सौ के भाड़े पर माइक। सरकारी सड़क और चाहे जब सियासी या जेबी संगठनों का अनियंत्रित और उपद्रवपूर्ण तांडव। घण्टों के लिए अड़ियल भीड़ के इर्द-गिर्द फंसे खड़े वाहन। गला फाड़ कर भड़ास निकालते कथित नेता और तालियां कूटते निठल्ले। बीते दो दशकों से आए दिन की आपदा बन चुके चक्का-जाम आंदोलन और खामियाज़ा भोगती निरीह जनता। जिसे अक्सर इस तरह के अराजक आंदोलनों की आपदा भोगनी पड़ती है। वो भी केवल इसलिए कि भीड़ जुटा कर शक्ति-प्रदर्शन करने वालों की सियासत बाटा के जूतों की तरह चमकती रहे। 

        ख़ुद को आम जनता के रूप में पीड़ित, वंचित, शोषित समुदाय का हमदर्द व मददगार बताने वालों की करतूत न सत्ता-मद में चूर राजनेताओं पर असर डालती है। ना ही प्रशासन के कारिंदों को प्रभावित कर पाती है। हुड़दंग और हंगामे की शक्ल वाले यह आंदोलन परिणामकारी हो तो भी कोई समस्या नहीं। शर्मनाक सच यह है कि इनका हश्र झूठे आश्वासनों से बहल जाने वाली हठ से अधिक कभी नहीं होता। हां, आम जनता ज़रूर अनचाही मुसीबत भोगने पर बाध्य होती है। 

        कष्ट तब होता है जब अगली यात्रा के लिए अरसा पहले बनवाए गए मूल भाड़े से मंहगे टिकट कागज़ का टुकड़ा बन कर रह जाते हैं। देश की तरुणाई अपने भविष्य निर्माण से जुड़े अवसरों से वंचित हो जाती है। पीड़ित व रोगी इस धींगामस्ती की वजह से अकारण घर और गंतव्य के बीच फंसे तकलीफ भोगते हैं। भूख-प्यास, क्लेश और मौसम की मार यात्री वाहनों में भेड़-बकरी की तरह भरी उस जनता को ही भोगनी पड़ती है, जिसे आन्दोलनवीर चुनाव काल मे जनार्दन कहते नहीं अघाते। 

       विडम्बना की बात यह है कि सियासी दुनिया के कालनेमियों और स्वर्णमृग नज़र आते मारीचों की हरकतों को आम जनता दो दिन कोसने के बाद भुला देती है। नतीजतन कथित नेताओं को चार दिन बाद हुड़दंग का नया मौका मिल जाता है। संवेदनाहीन सरकार और मदमस्त अफसरों पर ऐसे भोंडे प्रदर्शनों का असर पड़ता होता, तो आज देश में अनगिनत समस्याओं का वजूद नहीं होता। हैरत की बात है कि घण्टों गला फाड़ने और पसीना बहाने वाले अंततः आश्वासनों के झुनझुने को अपनी उपलब्धि मान कर गड़गच हो जाते हैं और उनके पिछलग्गू थोथी कामयाबी पर कुप्पे की तरह फूले नहीं समाते। 

        सोचिएगा कि आखिर ऐसे मदांधों से क्या यह नहीं पूछा जाना चाहिए कि अगर आंदोलन अमोघ-अस्त्र था तो एक ही समस्या अगली बार, बार-बार रक्तबीज बनकर कैसे उभरी? अपनी भाग्य-विधाता जनता के साथ बेनागा खिलवाड़ के शौकीनों को अब अपना ढर्रा बदलते हुए विरोध की नई रणनीति बनाने पर विचार करना चाहिए। ताकि आम जनता उनकी रहज़नी रहनुमाई का खामियाज़ा भुगतने से बच सके। साथ ही आंदोलन प्रभावी व परिणाममूलक साबित हों।

        कथित व तथाकथित नेताओं को भी समझना होगा कि अगर आपको लगता है कि आम जन को आपकी समस्या से गुरेज है, तो यह सही नहीं है। आप सोचें कि आपके आंदोलन से किसी को परहेज़ है, तो भी आप ग़लत हैं। आम जन को दिक़्क़त दरअसल आपके तौर-तरीकों से है। वही तऱीके जो अब नाकाम और भोंथरे हो चुके हैं। आम आदमी की परेशानी यह है कि आप अपने गुस्से की मिसाइल सिस्टम के बजाय जनता पर गिराने लगते हैं। जिसे किसी भी नज़रिए से जायज़ नही माना जा सकता।

आपको समझना होगा कि आपकी नाकामी और परेशानी आपका अपना दुरंगापन है। आपको एक बार मे घराती-बराती दोनों बनने का चस्का जो लगा हुआ है। मुसीबत यह है कि आपको जिनकी लग्ज़री गाड़ियों के पीछे धूल फांकते हुए भागना है। जिनके स्वागत, वन्दन, अभिनंदन में पलक-पाँवड़े बिछाना है। जिनके साथ तस्वीर को सर्वत्र प्रसारित कर ख़ुद को महिमा-मंडित करना है। उन्ही को आपदा वाले सीज़न में लोक-दिखावे के लिए कोसना, गलियाना व ललकारना भी है। केवल अपने पुछल्लों को अपना पौरुष दिखाने और लोगों को भरमाने के लिए। यदि आप मे साहस और दम है तो उनका हुक्का-पानी पहले  बन्द करो, जो सिर्फ छलिया हैं और आपकी आपदा के सबब भी। 

         पुछल्ले बनने वालों! आपको भी याद रहे। आप पाञ्चजन्य प्रतीत होने वाले ढपोरशंखों की आवाज़ पर जिस भी जंग में कूदोगे, केवल हारोगे। गड़बड़ की सूरत में अज्ञात आरोपी के रूप में दमन के निशाने पर आते रहोगे। जबकि आपके सूरमाओं को तो नामज़द आरोपी बनने के बाद भी उनके आका और काका बचा कर ले जाएंगे। पुरुषार्थ हो तो अपने रहनुमाओं से पूछो कि जाम, धरना, प्रदर्शन सिर्फ राजमार्ग पर ही क्यों? घेराव शासन-प्रशासन के ठेकेदारों व कारिदों के बंगलों से कार्यालयों के बीच की सड़क का क्यों नहीं? हिम्मत हो तो बेबस जनता की जगह राजनेता के काफिले की घेराबंदी करो। पूछो गंगा जाकर गंगादास व जमुना आकर जमुनादास बनने वाले बिचौलियों से कि क्या उनमें साहस है सरकार के नुमाइंदों व उनसे जुड़े आयोजनों के बहिष्कार का? यदि नहीं, तो झूठमूठ का बावेला क्यों? थोड़ी भी अक़्ल या गैरत हो तो अपने नेताओं को एक बड़ा सच समझा कर दिखाओ। आंदोलन को अधिकार बताने वालों से कहो कि संविधान को एक बार सलीके से पढ़ भी लें। संविधान में एक भी प्रावधान नहीं, जो आपको औरों के अधिकारों के हनन की छूट देता हो। यह सनद रहे हमेशा के लिए। जो जनहित में भी है और राष्ट्रहित में भी। सार्वजनिक साधन-संसाधन संपदा किसी दल या नेता की बपौती नहीं। आपकी अपनी धरोहर है, जो विरासत के रूप में भावी पीढी को सौंपी जानी है। इन धरोहरों को क्षति पहुंचाने के कुत्सित प्रयासों से परहेज़ करें। झूठे उकसावे और बहकावे में आकर भीड़ में शामिल भेड़ न बनें। आज जो संकट आप आम जनता के लिए पैदा कर रहे हैं, वे कल आपके व आपके अपनो के लिए भस्मासुर साबित हो सकते हैं। ईश्वर आपको सद्बुद्धि प्रदान करे।

             ★प्रणय प्रभात★

            श्योपुर (मध्यप्रदेश)

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काला अक्षर इंसान बराबर….. https://indoresamachar.net/?p=162101 Fri, 20 Jan 2023 09:27:45 +0000 https://indoresamachar.net/?p=162101 कल शाम खुद के साथ समय बीता रहा था, तो मन में ख्याल मुहावरों के आने लगे, जिनका उपयोग हम इंसान अक्सर अपनी बात का वजन बढ़ाने के लिए किया करते हैं। एकाएक ही मन अलग दिशा में चला गया कि इंसान अपनी बात को मजबूत करने के लिए बेज़ुबान तक को भी नहीं छोड़ता है। ऐसे हजारों मुहावरे भरे पड़े हैं, जिन्हें बोलते समय इन निर्दोषों को हम क्या कुछ नहीं कह जाते हैं। और आज से नहीं, कई वर्षों से ही कहते चले आ रहे हैं। फिर मन में एक टीस उठी कि जिन जानवरों की आँखों में से कई दफा आँसू छलक पड़ते हैं, तो उन्हें ठेस भी तो पहुँचती ही होगी न, बोल नहीं सकते हैं तो क्या, भावना तो उनमें भी हैं न….. 

एक जानवर, जिस पर हम दिन भर में एक बार तो टिप्पणी कर ही डालते हैं, वह है भैंस। जिसकी लाठी, उसकी भैंस; अक्ल बड़ी या भैंस; गई भैंस पानी में; भैंस के आगे बीन बजाना; काला अक्षर भैंस बराबर और भी न जाने क्या-क्या। ताकत से अपना काम बना लेने वाले की तुलना भैंस से, शारीरिक शक्ति की अपेक्षा बुद्धि की अधिकता की तुलना भैंस से, बना बनाया काम बिगड़ने की तुलना भैंस से, निरर्थक काम की तुलना भैंस से, अनपढ़ की तुलना भैंस से, मुझे आज तक समझ नहीं आया कि भैंस ने इंसान का बिगाड़ा क्या है। दैनिक जीवन में गाय से अधिक मात्रा में भैंस के दूध का सेवन करता है, यह देखते हुए मुझे यह कहने में ज़रा भी संकोच नहीं है कि जिस थाली में खाता है, उसी में छेद करता है इंसान। 

ज़रा सोचिए, हम और आपकी तरह यदि ये बेज़ुबान भी बोल पाते और बदले में इंसान को कुछ यूँ उपाधि दे जाते कि काला अक्षर इंसान बराबर, तो कैसा जान पड़ता। एक पढ़े-लिखे व्यक्ति को कोई अनपढ़ कहेगा, जो ज़रा सोचकर देखिए कि कैसा लगेगा। नज़दीक से मदमस्त गुजरती भैंस यदि आपको बेवजह कहती हुई निकल जाती कि भाई! ज़रा बताना, अक्ल बड़ी या इंसान। मुझे तो लगता है कि हमारे क्रोध का तो ज्वालामुखी ही फूट पड़ता। 

बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद; अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे; हाथी के दाँत खाने के और, दिखाने के और; ऊँट के मुँह में जीरा; घोड़ा घास से दोस्ती करेगा, तो खाएगा क्या; अपना उल्लू सीधा करना; घोड़े बेचकर सोना; अपने मुँह मियाँ मिट्ठू; अक्ल के घोड़े दौड़ाना; नाक पर मक्खी न बैठने देना; धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का; कुत्ते की दूम, टेढ़ी की टेढ़ी; मगरमच्छ के ऑंसू बहाना; अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है; कुत्ते को घी हजम नहीं होता और भी न जाने कितने ही मुहावरे हैं, जो बेज़ुबानों को इंसान से नीचे दिखाने का काम करते हैं। 

इंसान हमेशा अपने से कमजोर पर ही आज़माइश करता है। मैं ऐसा मानता हूँ कि इंसान के अलावा दिखावा करने का अवगुण किसी में नहीं होता है, फिर भी हाथी को बदनाम कर रखा है यह कहकर कि उसके खाने के दाँत और है व दिखाने के और। मेरे मायने में तो मगरमच्छ के आँसू मुहावरे में भी फेरबदल करने की जरुरत है, क्योंकि इंसान से अधिक दिखावटी आँसू मुझे नहीं लगता कि कोई अन्य प्राणी बहाता होगा। 

जाने-अनजाने में एक इंसान के मुँह से किसी दूसरे इंसान के लिए अपशब्द निकल जाते हैं, तो वह रौब झाड़ते हुए यह तो कह ही देता है कि तू जानता है मैं कौन हूँ। लड़ाई-झगड़ा कर या कॉलर पकड़कर उसे इस बात का एहसास तो दिला ही देता है कि उस शख्स ने गलत किया है। खुद को सबसे ऊपर समझने वाले इंसान को देखते हुए मैं तो कहता हूँ कि अच्छा ही हुआ जो प्रभु ने इन जानवरों को जुबां नहीं दी, नहीं तो उनके लिए हमारे द्वारा अपशब्दों का प्रयोग किए जाने पर जब वे अपनी ताकत की आज़माइश हम पर करते न, तो तमाम मुहावरे उनके चार पैरों के नीचे कुचल जाते। यकीन मानिए उनके पास जुबां नहीं है, लेकिन वे समझते सब हैं। तो कोशिश करें कि अपनी बात को वजनदार बनाने के लिए अन्य प्राणी को नीचे न गिराएँ।  

अतुल मलिकराम (समाजसेवी)

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अनिकेत https://indoresamachar.net/?p=161811 Mon, 16 Jan 2023 12:20:47 +0000 https://indoresamachar.net/?p=161811 निर्माण कार्य मे लगे मजदुरो के जीवन को नजदीक से देखा, जब पोलियो की दवाई पिलाने नगर से बहुत दूर बिल्डिंग व बंगलो पर जाते थे।उनका एक चौकीदार भी था ।उसका परिवार गांव में ही रहता, उसका घर ईंट का होता ऊपर टीन शेड ।बंगले का गृहप्रवेश की तैयारी होने लगी,तो उसने परिवार को भी बुला लिया।रात को रतजगा हुआ।सुबह वास्तु पूजन हवन,यज्ञ की हवि से सारे दोष मिट गए ,पावनपूत धूम्र मोहाविष्ट कर गया उस चौकीदार के परिवार को, शाम को अपूर्व सज्जा पकवान की सुगंध,सजे धजे जोड़े बुके उपहार लेक़े आये।उसके परिवार को भी भरपूर खाना नाश्ता, मिठाईयां खूब दी गई।बच्चे तो बहुत ही प्रफुल्लित थे।चार दिन में घर पूरा सज गया ,सब सामान नया ही था ,रहने भी आगये विधिवत रसोई बनने लगी तो आगे गार्ड रूम में वर्दीधारी आगया।मालिक ने बहुत प्रेम से उसे बुला कर उक्त घर तोड़ कर जाने को कहा बहुत अच्छी रकम दी, पुराने घर की लोहे की अलमारी भी दी।उसकी घरवाली बोली, तुम हर बार मुझे बुलाते उनका घर बन जाता मुझे गांव धकेल देते ।तुमको कितने घर व सामान मिले ,मुझे बड़ा नही छोटा ही सही स्थायी घर परिवार कब मिलेगा।सस्ते सामान की चौकीदारी बिना वर्दी वाला करता।महंगे सामान के लिए वर्दी,टेलीफोन रजिस्टर कैमरा वाला ।वो तो शिव की तरह अनिकेत निस्पृह है।चुपचाप, चल देता जहां जेसीबी चल रही होती।उनके बच्चे न पढ़ेंगे न राशन कार्ड न मतदान।वो तो अवधूत साधु है।

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बकासुर https://indoresamachar.net/?p=161058 Sat, 07 Jan 2023 10:39:15 +0000 https://indoresamachar.net/?p=161058 बकासुर एक राक्षस है जो किसी के पेट मे रहता, वो सदा भूखा रहता है जो कुछ भी कितना भी खा सकता है डकार नही आती उसे।बहुत सालो से उसकी चर्चा हो रही।इतना लिखा गया कि नेपा नगर की मिल भी कम पड़ गई।लोग जिद्दी है बकासुर की तरह उनका पेट भी नही भरता, तो लिखने बोलने वाले भी थकते नही।अब बकासुर हरे पेड़ खा रहा,फ़ाइल के साथ  लडकिया बच्चे  भी खा लेता,तालाब खाता मरी  मछलियां रह जाती।नदिया खाता,पहले सरस्वती गायब हुई,अब पर्यावरणविद कहते कैचमेंट एरिया गायब होने से नदिया गायब हो जाती।हेलीकॉप्टर सेना के गायब होते प्रशिक्षित अधिकारी खा लेता।सबसे अधिक जो जो खाया हमारा नैतिक स्तर  भाईचारा व विश्वास जो अब लड़की घर मे ही सुरक्षित नही।अतिथि देवो के देश मे बकासुर रूसी नागरिक चट कर गया।प्लाट जमीन नक्शा कुछ भी खा लेता।शुद्ध सात्विक प्रेम भी खा गया कि भगवान भी डर गया जमीन में चला गया ,कभी भी कही से मूर्तिया निकलती। एक बार एक गांव में गई तो देखा एक के दरवाजे पर पुरातत्व का स्तंभ लगा था उनकी पत्नी नकाशीदार पत्थर पर कपड़े कूट रही थी ,एंटीक के हिसाब से नही ध्वस्त मंदिर था उठा लाये थे कई घरों में लगे थे।और तो ठीक मौसम भी खा गया बकासुर,किसान बीज बोता तो खेच पड़ जाती बीज बेकार, दीवाली के दिन बारिश आ जाती खील बताशे  दिए की दुकान वाले हलकान हो जाते।सर्दी के कपड़े हीटर निकाल के बैठे रहे सर्दी आई ही नही।पके गेंहू पे पानी आ जाता गेंहू में काला दाग लग जाता फिर वो राशन की दुकान में आता।कई भाषाएं बोलिया प्रजाति के वनस्पति जानवर खा गया,वो म्यूजीयम में ही दिखते।इएलिये अब चांद व मंगल पे प्लाट काट रहे,मिट्टी ढुंढ ली खेती करेंगे बुकिंग भी चालू है अंतरिक्ष की।शायद वहाँ नही जायेगा,भूखा बकासुर। ऐसा बुकिंग करने वाले को लग रहा है।

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!! अंजलि हत्याकांड : सहेली बनी पहेली ?!!  https://indoresamachar.net/?p=160996 Sat, 07 Jan 2023 09:54:48 +0000 https://indoresamachar.net/?p=160996 (नो रोडरेज, नो हिट एंड ट्रायल: प्लांड मर्डर केस) 

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आखिरकार, वही हुआ जिसका डर था !देश की धड़कन और दिलवालों की दिल्ली एक बार फिर दागदार हुई.नए साल की नई सुबह  हैवानियत की पराकाष्ठा देखते ही बनी. मानो रूह कांप जाएं कि हम सभ्य समाज में जी रहें हैं या फिर सेक्स -कम्युनिज्म के फेज में? मानिए या न मानिए जनाब! यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता वाले मुल्क में आधी -आबादी (बालिका- महिलाओं) के विरुद्ध  एक युद्ध -सा छिड़ा़ है, कुचलने, रगड़ने, रौंदने, हत्या, बलात्कार, एसिड एटैक, धरेलू दुव्यर्वहार,एवं कामकाजी महिलाओं के साथ कार्यालय में दोहरी संवाद की फजीहत एक कामन फिनोमेना बनती जा रही है. आखिर क्यों? निर्भया, श्रद्धा व अंजलि  और न  जाने कितने झूठे व दिखावटी प्यार के जंजाल में फंसकर या गंदी पुरुष मानसिकता के  दरिंदगी के शिकार बन अपनी जिंदगी को गंवा चुकी हैं. दरअसल, समाज में महिलाओं के प्रति आज भी पुरुष की मानसिकता कमोबेश सेक्सुअल फैंटेसी और उपभोग की वस्तु वाली बनी है, कहीं वेस्टेड इंटरेस्ट वश कम्प्रोमाइज़ की कहानी तो कहीं जबरन मोलेस्टेशन का मामला सुर्खियों में.  एडोलेंस की लड़कियों और लड़कों में ब्वायफ्रेंड और गर्लफ्रेंड का बढ़ता क्रेज लाईफ को क्रश कर रहा है. इस पर सावधानी और सतर्कता बेहद जरुरी है. और यह तब ही संभव है जब बच्चों एवं वयस्कों के सोशलाईजेशन की प्रक्रिया सही ढंग से स्थापित हो. लाख वयस्तता के बावजूद पैरेंट्स और बच्चों के बीच सिर्फ  गुडमॉर्निंग और गुड नाईट का संबंध न हो, जो अमूमन इस ग्लोबलाईजेशन और आर्थिक उदारीकरण के दौर में कमोबेश अधिकांश परिवार में दिख रहा है.इसके लिए सरकार और निजी संस्थानों को अपने यहाँ समाजशास्त्र एवं मनोविज्ञान ज्ञाता को रखने की जरूरत है ताकि समय -समय पर वह ओरिऐंटेशन प्रोग्राम के द्वारा लोगों को प्रशिक्षित कर मन के अंदर मोबाईल, इंटरनेट,पोर्न मूवी से पनपते व्यसन को दूर कर सकें. यकीन मानिए इससे आधी -आबादी के प्रति सुरसा मुहं की तरह बढ़ती अपराध पर अंकुश लगेगा और समाज हमलावर होने से बचेगा. 

 दिल्ली के अंजलि प्रकरण में साफ  है कि सहेली पहेली बन रही है और पुलिस ला विल टेक इट्स आन कोर्स का फंडाबाज. आरोपी तो नपेंगे, तय है क्योंकि कानून के हाथ लंबे होते हैं,लेकिन बतौर लेखक और समाजशास्त्र अध्येता समस्या के जन्म और पनपने पर प्रहार जरूरी है.

मानसिकता और विचारधारा में बदलाव समय की मांग है.और इसके लिए हैशटैग, कैंडल – मार्च , से ज्यादा जरूरी सामाजिक जागरूकता और संवेदनशीलता को स्थापित करने की है.

प्रेषक-

डॉ. हर्ष वर्द्धन

लेखक 

पटना बिहार

9334533586.

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“लेट नाइट पार्टियाँ कितनी सुरक्षित” https://indoresamachar.net/?p=160718 Tue, 03 Jan 2023 16:39:36 +0000 https://indoresamachar.net/?p=160718 माना कि ज़िंदगी जश्न है, एक-एक पल को मस्ती से जीना चाहिए। पर मस्ती कहीं ज़िंदगी के उपर भारी न पड़ जाए इसलिए एक दायरा तय करते हर कदम बढ़ाना चाहिए। बिंदास जीवन का मतलब छिछोरापन हरगिज़ नहीं।  

आजकल युवा लड़के-लड़कियां ज़िंदगी के मजे लेने के मूड़ में होते है। और अब तो बड़े शहरों के साथ छोटे शहरों के लड़के-लड़कियां भी पीछे नहीं। ऐसे में लेट नाइट पार्टी का क्रेज़ बहुत देखने को मिल रहा है। पर ऐसी पार्टियां कितनी सेफ़ है ये सोचे बगैर लड़कियां अपने ब्वॉयफ्रेंड के साथ निकल पड़ती है, जिसका परिणाम कभी-कभी ज़िंदगी बर्बाद कर देता है। ऐसी कई पार्टियों में शराब, सिगरेट, चरस, गांजा भी सरेआम परोसा जाता है। और हम सुनते भी है पढ़ते भी है कि ऐसी पार्टियों में लड़कियों के साथ जबरदस्ती भी होती है। लड़कियों को किसी भी अनजान लड़के पर भरोसा करके उसके हाथ से कोई भी खाने पीने की चीज़ का सेवन नहीं करना चाहिए। 

लेटनाइट पार्टियों में युवाओं को एकदूसरे से खुल कर मिलने का मौका मिलता है। ऐसे में कई बार युवाओं के बहकने का खतरा भी होता है। यह उन पर भारी भी पड़ सकता है। जवानी का शुरुर ही ऐसा नशीला होता है। खासकर लड़कियों के लिए ऐसी पार्टियां खतरे से खाली नहीं। छेड़छाड़, बलात्कार और किडनैपिंग की संभावना भी नकारी नहीं जाती।

इसलिए जरूरत इस बात की है कि लेटनाइट पार्टी में लड़कियां ब्वॉयफ्रेंड के साथ समझदारी के साथ मौजमस्ती करें। पार्टी में मौजमस्ती बुरी नहीं होती पर मौजमस्ती किसी समस्या का कारण न बन जाए इस बात का ख़याल रखना जरूरी होता है। और माँ-बाप का भी फ़र्ज़ बनता है कि अगर आपकी बेटी लेट नाइट पार्टी में जा रही है तो वहाँ के माहौल की जाँच पड़ताल कर लें, जगह कौनसी है, वहाँ का स्टाफ़ कैसा है और किसके साथ जा रही है। पब्स, होटल्स या कहीं भी हो शहर से बाहर ना हो इस बात का भी ध्यान रखें। 

लेटनाइट पार्टी का क्रेज़ हर किसी को होता है। वैलेन्टाइन डे और न्यू यर के मौके पर युवा पीढ़ी लेट नाइट पार्टियों में जाना पसंद करती है। टीनएजर्स इस के खास ही दीवाने होते हैं। पहले इस तरह की पार्टियां खास अवसरों पर ही आयोजित होती थीं। अब इन पार्टियों का आयोजन किसी न किसी बहाने होता ही रहता है। टीनएजर्स को भी ये पार्टियां इसलिए अच्छी लगती हैं क्योंकि इन के जरिए वे जिंदगी के मजे अपने दोस्तों के साथ लेना चाहते है। इन पार्टियों में खूब हल्लागुल्ला और शोरशराबा होता है।

अगर कोई लड़का अपनी गर्ल फ्रेंड को किसी पार्टी में ले जाता है तो पूरी जिम्मेदारी के साथ ले जाना चाहिए अगर कोई ऊंच नीच हो गई तो खुद लड़की की रक्षा करने में सक्षम है या नहीं इस बात को नज़र में रखकर प्लान बनाना चाहिए। और लड़कियों को भी ऐसे ही लड़कों पर भरोसा करना चाहिए जो लड़कियों की पूरी इज्ज़त करता हो और हर परिस्थिति से निपटने में सक्षम हो। इज्ज़त से बढ़कर कुछ भी नहीं। माँ-बाप पूरी छूट देते है तो बच्चों का भी फ़र्ज़ है कि माँ-बाप के भरोसे पर खरे उतरे ऐसा कोई काम न करें जिससे माँ बाप की आबरू पर बट्टा लगे।

बेशक ज़िंदगी जश्न मनाने का नाम है, एंजॉय करना चाहिए, पर किसी भी चीज़ का एक हद में रहकर मजा लिया जाए तो बेहतर होगा। 

भावना ठाकर ‘भावु’ बेंगलोर

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