भाजपा से बड़े हो गए मोदीभाजपा के नाम पर नहीं मोदी के नाम पर लड़ा जा रहा चुनाव, बड़ा हो गया चेहरा, बौना पड़ गया संगठननई लोकसभा गठन के लिए हो रहे चुनाव के पूरे अभियान से भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह से आऊट हो गई है। यह पहला मौका है जब अपने आपको संगठन आधारित दल कहने वाली पार्टी में संगठन बोना पड़ गया और चेहरा बड़ा हो गया। यह पूरा चुनाव भाजपा द्वारा अपने नाम और अपने चुनाव चिन्ह को दरकिनार करते हुए नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ा जा रहा है। वैसे भी जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री की दौड़ में आए तब से ही भाजपा में दिग्गज नेताओं को दरकिनार कर दिया है। पहले अटल बिहारी वाजपेयी फिर लालकृष्ण आडवानी जैसे नेताओं को घर बैठा दिया। इस चुनाव में तो हद ही हो गई जब किसी भी रोड शो या आमसभा में या फिर कहे तो प्रचार में भाजपा के नाम पर नहीं मोदी के नाम पर वोट मांगे जा रहे है। आजाद भारत में अब तक हुए लोकसभा के सभी चुनाव में से कोई भी चुनाव ऐसा नहीं रहा है जिसमें की पार्टी और चुनाव चिन्ह को हटाकर उनके स्थान पर व्यक्ति को स्थापित कर दिया गया हो। इंदिरा गांधी और राजीव गांधी वाले दौर में भी जब कांग्रेस का प्रचार का पूरा जोर उनके नामों पर ही रहता था तब भी कांग्रेस के नारे में कही न कही कांग्रेस और पंजा निशान मौजूद हुआ करता था। भाजपा को शुरु से ही ए पार्टी विथ डिफरेंट के रूप में प्रचारित किया गया है। हमेशा भाजपा को लेकर जनता के बीच यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि यह एक केडरबेस पार्टी है। इस पार्टी में कोई भी व्यक्ति या उसका चेहरा महत्वपूर्ण नहीं है। यहां हमेशा सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण पार्टी का संगठन है और पार्टी का चुनाव चिन्ह है। यही कारण है कि पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा का पूरा फोकस अपने नाम पर और कमल निशान पर रहता रहा है। बात ज्यादा पूरानी नहीं है जब भाजपा ने अटल बिहारी वाजपेयी के चेहरे को सामने करके केंद्र में सरकार बनाने के लिए चुनाव लड़ा था। उस चुनाव में भाजपा को सफलता मिली। अटलजी के नेतृत्व में भाजपा ने तीन बार सरकार बनाई। पहली बार 13 दिन की, दूसरी बार 13 माह की और तीसरी बार 5 साल की। उस समय भाजपा के प्रचार का पूरा फोकस अटलजी के नाम पर वोटों की फसल के रूप में परिवर्तित करने पर रहता था, लेकिन उस प्रचार अभियान में भी भाजपा ने अपनी पार्टी के नाम और कमल के निशान को भी उतनी ही तवज्जों दी थी जितनी अटलजी के नाम को दी गई थी। इस बार पहली बार भाजपा अपने अब तक के नीति, नियम, कायदे और पहचान को तोड़ती हुई नजर आ रही है। इस बार पहली बार ऐसा हो रहा है जबकि कही भी यह प्रचार नहीं किया जा रहा है कि कमल के निशान पर मुहर लगाईए या बटन दबाइए और देश में भाजपा की सरकार बनवाईए। अब तो प्रचार हो रहा है- एक बार फिर मोदी सरकार… अब तो प्रचार हो रहा है- मोदी है तो मुमकीन है… अब तो प्रचार हो रहा है- मोदी के कारण विश्व में भारत की साख बनी… अब तो प्रचार हो रहा है- घुसपेठियों को जवाब देने के लिए मोदी का होना जरूरी है… अब तो प्रचार हो रहा है- मोदी होगा तो दुश्मन देशों में डर रहेगा… इस तरह का पूरा प्रचार अब केवल और केवल नरेंद्र मोदी पर सिमटकर या फिर कहे कि केंद्रीत होकर रह गया है। इस प्रचार में कही भी भाजपा का नाम, कमल का निशान नहीं आ रहा है। इस स्थिति को भाजपा में युग परिवर्तन के रूप में देखा और समझा जा सकता है। इसके साथ ही यह भी जाना जा सकता है कि अब भाजपा में जो युग आ गया है वह इसे आम आदमी की पार्टी से कार्पोरेट पार्टी के रूप में तब्दिल करने वाला युग है। भाजपा का वर्तमान वाला युग इसे अब तक की अपनी जड़ों से अलग हटकर काम करने वाला युग है। भाजपा का यह नया युग इस पार्टी को नई भूमिका देने वाला युग है। कही ऐसा न हो कि मार्गदर्शकों का ही शहर बन जाएभाजपा में इस नए युग के साथ ही पार्टी की स्थापना से लेकर उसे वटवृक्ष का स्वरूप देने वाले नेताओं को राजनीति की मूल धारा से हटा कर पार्टी का मार्गदर्शक बना देने का सिलसिला भी शुरु हो गया है। अटलजी को तो पार्टी ने स्वास्थ्य गत कारणों से मूलधारा से हटाया था। पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी हो या पूर्व केंद्रीय मानव संसधान विकास मंत्री मुरली मनोहर जोशी हो, पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा हो या उस दौर के उस पीढ़ी के कोई अन्य नेता हो। इन सभी नेताओं को एक के बाद एक बिना शोर के धीरे से मार्गदर्शक मंडल में जमा किया जा रहा है। इस चुनाव में भी पार्टी के द्वारा 75 वर्ष की आयु पर पहुंच जाने वाले सभी नेताओं पर वीआरएस थोप दिया गया है। उन सभी को मार्गदर्शक मंडल में जमा कर दिया गया है। जिस तेजी से इन मार्गदर्शकों की संख्या बढ़ती जा रही है उसे देखते हुए लगता है कि बहुत जल्दी यह संख्या इतनी हो जाएगी कि इनका अपना ही एक अलग शहर बसा दिया जाए। मार्गदर्शक भी है तो नाम केपार्टी के द्वारा जिन नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में जमा कर दिया जाता है उनसे मार्गदर्शक कभी नहीं लिया जाता है। यह नेता पार्टी के लिए भूतकाल और वर्तमान की दर्शनीय मूर्ति बनकर रह जाते है। पार्टी के द्वारा मूलधारा से हटाए जाने वाले हर नेता को इसी जमात में ले जाकर बैठाया जा रहा है।