सुहाग के दोहे

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हर नारी नित माँगती,कायम रहे सुहाग।

युगों-युगों पलता रहे,जीवन में अनुराग।।

नारी करवा पूजकर,माँगे यह वरदान।

हे !माता देना सदा,पति को जीवनदान।।

नारी की खुशियाँ तभी,जब तक संग सुहाग।

बिन सुहाग फुफकारता,तन्हाई का नाग।।

काया का सौंदर्य भी,चाहे सदा सुहाग।

वरना हर शृंगार तो,हो जाते बेराग।।

सचमुच में अभिशाप है,नारी,बिन सिंदूर।

हो जाता उल्लास तब,नारी से तो दूर।।

है सुहाग तो नार को,बहुत बड़ा वरदान।

बिन पति मिलता है कहाँ,नारी को सम्मान।।

जीवन मुरझाता सदा,नारी हो बेनूर।

यदि सुहाग उजड़े कभी,आता दुख का पूर।।

दम्पति तब खुशहाल हों,जब हों दोनों साथ।

जीवन गति करता तभी,रहे हाथ में हाथ।।

यश,वैभव पति को मिले,पुष्पित रहे सुहाग।

यही कामना बलवती,करती पूजन,त्याग।।

             -प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे

                           प्राचार्य

   शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय

         मंडला(मप्र)-481661