शायद.!

शायद.! मै टूट रही हूँ।

     मेरे सपनों से,

     मेरे अपनों से,

     मै.! कही

छूट रही हूँ।

शायद! मै टूट रही हूँ।

शायद! मै हार रही हूँ।

         अपनी आशाओं से,

         अपनी अभिलाषाओं से,

         अपनी इच्छाओं को,

मै! मार रही हूँ।

शायद! मै हार रही हूँ।

निधि “मानसिंह”

कैथल, हरियाणा