चलो मृत्यु के लेख मिटाकर,
जीवन के पदचाप लिखें
ठंडी पड़ती सांस-सांस पर,
अपनेपन का माप लिखें।
लिखें कि चलता रहता जीवन,
हां,थोड़ा भटकाव यहां,
कहीं-कहीं पथरीला पर भी,
देता रहता घाव यहां।
समय गिराता अगर गर्त में,
वही बढ़ाता हाथ यहां,
धूल झाड़कर,झेंप मिटाकर,
पल-पल देता साथ यहां।
हां,यह कुटिल काल का पहिया,
कुचल रहा रिश्ते-नाते,
डरे,छुपे,हो गये बेगाने,
जो मरघट तक संग जाते।
आंखों के बरसाती नाले,
सूख गए, वीरान हुए,
जहां चहकते तोता-मैना,
गांव-गली शमशान हुए।
अंखुआयेगी वहीं जिंदगी,
धरती होगी गोद भरी,
बरसेगा फिर मेघ झमाझम,
पहना चूनर हरी-हरी।
अशोक मिश्र, प्रवक्ता अंग्रेजी
इंटर कालेज प्रताप गंज जौनपुर
उ.प्र।