कल किसने देखा है

कल किसने देखा है,

न तूने ना मैने देखा है।

इन हाथों को ना देख इतने गौर से,

इन हाथों में क़िस्मत की न कोई रेखा है।

ये जो मुसीबत के सर पर पहाड़ खड़े हैं,

ये तो इंसान के कर्मों का लेखा जोखा है।

इस काली रात को देख कर ना घबरा,

हर रात के बाद एक उम्मीद का सवेरा है।

जिस ज़मी के लिए तू अपनो का ख़ून बहा रहा,

ये ज़मी ना तेरा ना मेरा है।

जवानी पर इतना ना गुरूर कर ऐ “तबरेज़”,

 *लहद में ना जाने कितने जवानों को देखा है।* 

 *तबरेज़ अहमद*

बदरपुर नई दिल्ली