वे पहुँचे हुए नेता थे। इतना पहुँचे हुए कि एक फोन करने पर सारे के सारे अधिकारी हाथ बाँधकर उनके आगे खड़े हो जाते थे। दुकानदार उनके फोन करने से पहले ही उनकी गतिविधि को भांपकर जरूरी सामान उनके घर भिजवा देते थे। उनकी आँखें, भौंहें, नाक, मुख सबकी संरचना कुछ इस तरह से बन गई थी उन्हें कुछ कहने या करने की जरूरत नहीं थी। उन्हें देखते ही सामने वाले की हालत टाँय-टाँय फिस्स हो जाती थी। उनका व्यक्तित्व गरीब की थाली से रोटी-नून तक छिनने में नहीं हिचकिचाता था। इन्हीं सारे गुणों को देखते हुए एक पहुँचे हुए दल ने उन्हें टिकट देने में अपनी भलाई समझा।
जैसे ही पहुँचे हुए नेता को टिकट मिलने की घोषणा हुई, उनका खौफ लोगों पर सातवें आसमान पर सिर चढ़कर बोलने लगा। लोग ऊपर से प्यार दिखाने के बहाने उनके नरमुंडों के कटआउट पर दूध की गंगा बहाते कभी भोज कार्यक्रम आयोजित करते। चारों ओर धूम मची थी। किंतु यही लोग भीतर-भीतर अपने भविष्य की कल्पना कर सहम जाते। एक दिन नेता अपने चमचों के साथ एक स्कूल पहुँचे। वहाँ जाकर जोरदार भाषण झाड़ते हुए कहा – बच्चों हमें बड़ा का आदर करना चाहिए। उनका कहा मानना चाहिए। उनके साथ बुरा व्यवहार नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से साक्षात भगवान की सेवा करने का पुण्य मिलता है। बच्चों ने जोरदार तालियाँ बजाई। स्कूल प्रबंधन ने उनका मान-सम्मान किया। सभी अध्यापक और बच्चे हाथ जोड़कर उनके आगे ऐसे खड़े हो गए मानो साक्षात प्रभु धरती पर उतर आए हों। तभी नेता का मोबाइल बज उठा। मोबाइल कान पर चस्पाते हुए गंभीर आवाज में किसी से बात करने लगे।
मामला गंभीर था। नेता अपनी गाड़ियों का काफिला लिए एक बुजुर्ग के घर पर जा धमके। लात मारकर दरवाजा खटखटाया। बूढ़े डरते हुए दरवाजा खोला। नेता का गुस्सा इतना अधिक था कि उसने एक जोरदार तमाचा जड़ते हुए बूढ़े को नीचे गिरा दिया। धमकाते हुए कहने लगे – अरे बुड्ढे। ज्यादा खुजली मची है क्या। एक बार कहने पर समझ नहीं आता। सीधे-सीधे जमीन बेच दे। नहीं तो ये जो औने-पौने दाम मिल रहे हैं, वह भी नहीं मिलेगा। तालाब में रहकर मगरमच्छ से दुश्मनी नहीं करते। बकरे की अम्मा कितनी देर तक खैर मनाएगी। कभी न कभी हलाल तो होना ही है। शराफत इसी में है जैसा कहता हूँ वैसा मान लें। ज्यादा चूँ चपड़ करने की कोशिश की तो तेरे लिए अच्छा नहीं होगा। कम से कम अपना न सही अपनी इकलौती जवान बेटी का खयाल तो कर। वह हर दिन सुरक्षित घर इसलिए आती है कि हमारे आदमियों ने उसके साथ कोई ऊँच-नीच नहीं की। तेरे लिए इस उम्र में लोक-लाज बड़े मायने रखती है। तू पैसे बिना तो जी सकता है, लेकिन चरित्र के बिना बिल्कुल नहीं। इसलिए लोक-लाज के लिए ही सही अपनी जिद छोड़ दे। वरना तुझे सीधा करने के मेरे पास और भी कई उपाय हैं।
थरथराते हुए पत्ते की तरह बूढ़ा काँप रहा था। बेटी का चेहरा आँखों के सामने उभर आया। तुरंत उसने कागज पर हस्ताक्षर करते हुए अपनी जिद छोड़ दी।