अंधभक्त बनने की कहानी

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, प्रसिद्ध नवयुवा व्यंग्यकार

सर्दी का मौसम था। तलुवाचाट मंत्री शाम के समय संसद से वापस लौट रहा था। तभी उसे सामने एक गरीब नजर आया। शरीर कांप रहा था। कपड़े फटे हुए थे। तलुवाचाट मंत्री ने जेब से एक मेनिफेस्टो निकाल कर गरीब के हाथ पर रखा। परन्तु गरीब उसे लेने से इनकार करते हुए बोला, ‘श्रीमान्! मुझे मेनिफेस्टो नहीं चाहिए। मैं जानता हूँ, आप सत्ता पक्ष के पहुँचे हुए मंत्रियों में से एक हैं। मेरी एक समस्या हैं। मैं आपसे सिर्फ उसका समाधान चाहता हूँ।’

“ओह! बताओ भाई तुम्हारी क्या समस्या है?” तलुवाचाट मंत्री ने गरीब से पूछा।

कुछ हिचकते हुए गरीब बोला, “मैं जानता हूँ कि मैं एक गरीब हूँ, पर मेरी दिली इच्छा है कि लोग मुझे ‘अंधभक्त’ कह कर पुकारें। ऐसा करने से महंगाई, भ्रष्टाचार, लाचारी, दरिद्रता और अन्य कोई समस्या मेरे पास फटकने तो दूर मेरे बारे में सोचकर टांय-टांय फिस्स हो जाएगी। दुर्भाग्यवश, मुझे कोई तरीका नहीं सूझ रहा कि लोग मुझे ‘अंधभक्त’ कहकर बुलाएँ।”

तलुवाचाट मंत्री कुछ देर सोचता रहा, फिर बोला, “मेरे पास तुम्हारी समस्या का समाधान है। देखना जल्द ही लोग तुम्हें ‘अंधभक्त’ कहकर बुलायेंगे। बस मैं जैसा कहूँ, वैसा ही करते जाना। तुम इस जगह से कुछ दूर खड़े हो जाओ और जब भी तुम्हें कोई ‘अंधभक्त’ कह कर पुकारे, उसके पीछे ऐसे दौड़ना जैसे उसे मारने आ रहे हो।” तसुवाचाट मंत्री ने उस गरीब को समझाया और वहाँ से चला गया।

गरीब उस जगह से कुछ दूर जाकर खड़ा हो गया। इस बीच तलुवाचाट ने वाट्सप यूनिवर्सिटी के पप्पुओं को पास बुलाया और गरीब की ओर इशारा करते हुए बोला, पप्पुओं, वो गरीब देख रहे हो, जो वहाँ खड़ा है। उसे अंधभक्त कहकर पुकारने से वह बहुत चिढ़ता है।

पप्पुओं को ऐसी बात पता चलते ही शैतानी सूझी। जल्द ही सभी पप्पु उस गरीब के आस-पास खड़े होकर जोर-जोर से अंधभगक्त…. अंधभक्त चिल्लाने लगे। तलुवाचाट मंत्री के बताये अनुसार वह गरीब उन पप्पुओं के पीछे यूँ भागा मानों उन्हें मारने आ रहा हो। पप्पुओं की देखादेखी अन्य लोग भी गरीब को ‘अंधभक्त’ कहकर बुलाने लगे। जितना ही गरीब सबके पीछे भागता, उतना ही वे लोग उसे चिढ़ाने के लिए अंधभक्त कहते हुए उसके पीछे भागते। कई दिनों तक ऐसे ही चलता रहा। इन सबका नतीजा यह हुआ कि वह गरीब पूरे देश में अंधभक्त के नाम से मशहूर हो गया।