रोशनी मुठ्ठी भर……..

अंधेरो के पर्दों में से 

अक्सर झांकते है उजाले,

उजाले रूकते नहीं कभी

आते हैं अंधेरों से गुजरते

बना लेते हैं रास्ते अपने,

वक्त का दौर भी कुछ ऐसा

ही होता है जिंदगी के सामने,

तन्हा होती है जब जिंदगी

अंधेरों से घिरी घिरी हु‌ई 

तब न अचानक कहां से 

आ जाती है अंधेरी रातों को

चीरती हुई उजालों से भरी 

रोशनी मुठ्ठी भर ,

अंधियारी अमावस ठहर 

नहीं पाती फिर चुटकी भर

रोशनी की उजास के सामने……………

    लाल बहादुर श्रीवास्तव

शब्द शिल्प ,एल आई जी 

A-15जनता कालोनी मंदसौर म.प्र.

9425033960