सपने लूटते बंदरगण!

जंबूद्वीपे उत्तराखंडे एक नगर था इंद्रप्रस्थ। यहां चंद्रप्रकाश नाम का एक दरिद्र निवास करता था। चंद्रप्रकाश अत्यंत वृद्ध हो चुका था और वह कई चुनावों में अपने वोट को फेंक चुका था। वोट फेंकते-फेंकते समय की गति से चंद्रप्रकाश वृद्ध दादाजी बन गया था। चेहरे पर अनंत झुर्रियां! रूखे बाल! पिचके गाल! एकदम पुराने वोटर की तरह! चंद्रप्रकाश की असहाय बूढ़ी बाहों में पोते-पोतियों , नाती-नातिन आदि उछलने लगे थे। एक दिन बूढ़ी काकी दादी उर्फ चंद्रप्रकाश की पत्नी श्री ने चंद्रप्रकाश को छत पर सुखाए जाने वाले कपड़ों की निगरानी के लिए लगा दिया। होता यह कि इंद्रप्रस्थ की छतों पर अक्सर बंदर उछलते-कूदते रहते हैं। इस छत से उस छत और उस छत से इस छत! धमाचौकड़ी मचाते बंदरों का समूह! बंदरों का अपार समूह इंद्रप्रस्थ की हर एक छत पर देखा जा सकता था। बंदरों के इसी आतंक के कारण समस्त प्रकार के बुजुर्गों की ड्यूटी छत पर पापड़-मुंगेड़ी बनाने अथवा कपड़े सुखाने में बंदरों की रक्षा के लिए लग जाया करती थी। वयोवृद्ध चंद्रप्रकाश भी आज इसी का हिस्सा बने हुए थे।

बंदरों की जैसी आदत होती है; थोड़ी देर में बंदरों का एक पूरा दल आ गया। वह बहू का एक कपड़ा उठाकर ले गया। अब चंद्रप्रकाश करे तो क्या? चिल्लाए तो कैसे? तो उसने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू किया- अरे बंदर आया! बंदर आया! बड़ा सा सूटकेस ले गया! तब आसपास सब लोग इकट्ठे हो गए। बढ़ऊ को ताना मारने लगे। तू सूटकेस छत पर क्यों ले गया? इतने बुढ़ापे में भी सूटकेस छत पर ले जाने की क्या जरूरत थी? चंद्रप्रकाश की पत्नी श्री वयोवृद्ध दादी भी छत पर आ गई। पत्नी पुराण के नियमानुसार चंद्रप्रकाश को फटकार भी लगाई। आखिर तुमने सूटकेस ऊपर रखा ही क्यों? सूटकेस ऊपर आया ही कैसे? तब चंद्रप्रकाश ने धीरे से दादी के कान में कहा- सूटकेस नहीं बहू का कोई कपड़ा था। मैं कैसे कह सकता कि बंदर बहू का कपड़ा ले गया! तब दादी ने मामले की नजाकत समझकर चिल्लाना शुरू किया- अरे बंदर आया! बंदर आया! मोटी सी पायल लेकर भाग गया। घर के आसपास और ज्यादा भीड़ इकट्ठी हो गई। सारी भीड़ बुड्ढे-बुड्ढियों को लानत देने लगी कि तुमने आखिर सूटकेस वहां रखा क्यों? सूटकेस रखा भी तो उसमें पायल क्यों रख दी? क्या चांदी की चीजों को कैसे रखा जाता है? घर में अच्छा-खासा कोहराम मच गया। 

तभी राजा विक्रमादित्य ने बेताल के मुंह को ढांपते हुए कहा- बेताल यह कहानी उस बूढ़े चंद्रप्रकाश की नहीं है, बल्कि यह हर एक वोटर की है। जिसके सपनों को आए दिन कोई न कोई नेता बंदर का रूप धरकर चुरा ले जाता है। बेचारा दरिद्र वोटर अपनी बात भी नहीं बता पाता है। वह अपने ढंग के सपने भी नहीं देख सकता है। यह कहानी सुनाकर तुम मुझे नेताओं के सपने चुराने की नियत पर पूरा मुंह मत खुलाओ। असल में यह हर एक नेता की कहानी है। वह हर चुनावी बेला में आता है और गरीब वोटरों सपने भी चुरा के ले जाता है। सारे सपने लूट लिए! इतना सुनकर बेताल ने जोरदार ठहाका लगाया। वह चालू चक्करदार चुनावी रैली में एक बड़े होर्डिंग से लटक गया। बेताल ने लंबा कहकहा लगाया और कहा- अरे विक्रम! तू तो बहुत सयाना हो गया है रे!

— रामविलास जांगिड़,18, उत्तम नगर, घूघरा, अजमेर  (305023) राजस्थान