अलसुबह कड़कड़ाती ठंड में धुंध अपनी चादर समेटने की मशक्कत कर रही थी । मैले-कुचले कपड़े व अधफटे चप्पल बिखरे बाल लिए दो बच्चियाँ अपने डेरे से सीधे उठकर झोला लिए बस स्टैंड आती है रात्री को भजन संध्या में फैंके गए झूठन वाले कचरे के ढेर से पन्नियाँ, प्लास्टिक, कुछ साबुत पुड़ियाँ बीनने लगती है । चाय का थैले वाला उनको दुत्कारता है । इधर-उधर खड़े टैक्सी वाले अपने को खुजाते हुए मजाक करते हुए लात मारकर भगाने लगते हैं । गिरती पड़ती बच्चियाँ बस स्टैंड के पास के स्कूल में जाती हुई बच्चियों को निहारती है । थैला टांगे बच्चियाँ स्कूल के गेट में घुस जाती है । स्कूल प्रथम पाली सुबह का है । स्कूल के ताले अभी तक नहीं खुले हैं । स्कूल के कमरे की सीढ़ियों से सटकर बैठते हुए अपने आपको ठंड से बचाने का प्रयास कर रही है । कुछ आपस में गड्डमड्ड होकर बातें करती है और स्कूल में मनाए गए मानव अधिकार दिवस के गेट के भीतर उड़कर गिरे बेनर पर पत्थर फैंक फैंक कर उसमें छेद करने लगती है, इतने में शिक्षिका आ जाती है और बच्चियों पर चिल्लाती है – ‘ हरामजादियों क्यों फाड़ रही है बैनर को , कितना अच्छा कितना महंगा बनवाया था । ‘
स्कूल के कमरों की चाबी देती हुई फिर बोली – ‘ जाओ कमरों का ताला खोलो अपनी अपनी कक्षा में बैठो , जरा सी देर क्या हो जाती है मैदान सर पर उठा लेती हो ।’
बच्चियाँ भाग कर ताला खोलती है और कक्षाओं में घुस जाती है । मेडम अपने कंधे से खिसक गई भारी भरकम शाल को पुनः ठीक करती है । इतने में दूसरी मेडम भी आ जाती है , हाथ मलते मलते एक मास्टरजी भी आ जाते हैं । कुछ बच्चियाँ नित्य की भाँति कमरे में झाड़ू लगाने लगी । एक लड़की लोहे के सलिये का छोटा टुकड़ा ले लोहे के प्लेट को बजाती हुई घंटी की ध्वनी निकालने की जुगत करने लगी । चार बच्चियाँ खाली स्टील की टंकी ले पास के मोहल्ले में लगे नल पर पानी भरने चल दी , दो बड़ी बच्चियों ने कार्यालय व कक्षाओं में से कुर्सियाँ निकालकर बाहर मैदान में धूप निकलने वाली जगह पर गोल घेरे में रख दी ताकि उनके गुरुजन धूप सेक सकें । कुछ बच्चियाँ टाटपट्टियाँ बिछाकर सिकुड़- सुकड़ाती कक्षों में बैठ गई। कहीं टाटपट्टी छोटी पड़ गई तो कहीं जगह जगह से फटी टाटपट्टियों में से ठंडी फर्स झांकती बच्चियों को चिढ़ाने लगी । डाक बनाती एक मेडम ने हांक लगाई , ‘ चलो अपना अपना लिखो । ‘
बच्चियाँ ‘ ढ’ ढक्कन का लिखने की जुगत करने लगी ।बाहर धूप सेक रहा मोहल्ले का किसन मास्टरजी से गुटका माँगने आता है तो मैदान में दौड़ते हुए सुअर से टकरा जाता है , दोनों एक दूसरे को घूरकर देखते हैं ,मास्टरजी पत्थर लेकर सुअर को भगाने दौड़ पड़ते हैं । आसपास के रहवासी इस कन्या शाला परिसर में कचरा फैंकते हैं इसलिए गंदगी साफ करने सुअर को आना फड़ता है । किसन सुअर भगाता गेट के बाहर निकलता है तो शाला के गेट पर सूखाने के लिए डाले गए पेटीकोट व साड़ी हवा के झोंके से उड़कर किसन के सर पर गिर जाती है। वह गाली बकता गेट के बाहर आ जाता है । उधर कमरों से कुछ बच्चियाँ अचानक ‘ ओ ओ कर उल्टियाँ करती हुई निकल पड़ती है , मेडम नाक पर कपड़ा रख खुले में आकर शुद्ध हवा लेने लगती है । कारण स्कूल से सटकर बने मकानों के शौचालयों के पाइप स्कूल के कमरों के पास बनी नाली में गिरते हैं तो किसी के भवन के शौचालय का पाइप भपके के साथ स्कूल की खिड़की के यहाँ आकर ही गिरता है । जो बच्चियाँ नाक पर रखने के लिए अपने साथ रूमाल नहीं लाती वे अचानक आई बदबू से घबराकर बाहर जाकर उल्टियाँ करती है । मध्याह्न भोजन आता है गऊ की जायी सब खा लेती है की टिप्पणी के साथ वितरित होने लगता है । कुछ तो देखकर ही घर भाग जाती है । बच्चियाँ फिर भी आती है पढ़ती है , ‘ ढ ‘ ढक्कन का ‘ ढ ‘ ढपोलशंख का सीखती है बच्चियाँ । उलाहना – मनचलों की मजाक सहती कूड़े के ढेर में से पन्निया – प्लास्टिक ढूंढती है बच्चियाँ । ऊँचे ऊँचे लोग और मंचों से बच्चियों के हित की बात करते नेताओं की सब बातें सुनती है बच्चियाँ ।
भगवती प्रसाद गेहलोत
पिपलिया स्टेशन, जिला मंदसौर , म प्र