चुनाव से पहले पार्टी बदल कर पुरानी पार्टी पर दांत पीसते हुए गालियां देने के मूड के नेता की तरह धीर गंभीर बैठे हो क्या बात है भाई।
चुनाव में एक चिन्ह पर जीत कर बाद में दूसरी पार्टी में कूदने वाले कूदफांदी मेंढकी नेताओं को भगवान किस तरह के दंड दे सकेगा, उन दृश्यों की कल्पना कर रहा हूं।
इस तरह के दंड की बात होती तो हमारे देश में तो नेताओं का अकाल पड़ जाता। लंबे समय तक पदों पर आसीन परम पवित्र अनुभवी नेता तो लंबी कूद में हमारे खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने योग्य हो गए हैं न।
जिस तरह पत्नीव्रत पति होता है, होना चाहिए, जिस तरह पतिव्रता पत्नी होती है, होनी चाहिए, ठीक उसी तरह पार्टी के प्रति वफादार होना चाहिए नेता को। अब यह मत कहना राजनीति में नीति, न्याय, वफादारी, समर्पण, प्रतिबद्धता जैसे शब्दों का कोई मूल्य नहीं वर्तमान में। पार्टी चाहती है कि विजयी प्रत्याशी कम से कम पार्टी के प्रति वफादारी निभाए, इसलिए यह पार्टीव्रती कसम उनके आस्थानुसार मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर में दिलाई जाने चाहिए।
भोले भाई! तुम तो नादान के नादान ही ठहरे! मौका देख कर कसम खाना, शपथ लेना वफादारी की और बाद में उस शपथ से कन्नी काट लेना हमारे देश में नेताओं के लिए सहज बात है। उस पर राजनीति में घुले मिले नेताओं के आश्वासनों, शपथों, कसमों के बारे में और क्या खास बोलें? अगर वही अपनी बात पर अड़े रहते, वचन के पक्के होते तो क्या देश में गरीब मतदाताओं की हालत ऐसी होती?
तुम सही कह रहे हो। नेताओं से ढेला भर का फायदा न होने की हालत में ही तो जनसामान्य अपना सारा भार भगवान पर डाले दिन गुजार रहे हैं। धार्मिक स्थानों पर लिए जाने वाले कसमों के कारण भगवान की दृष्टि गरीबों पर कम तो नहीं पड़ेगी, सोच कर मैं परेशान हुआ जा रहा हूं।
अरे भाई राजनीति का मतलब ही है जनसेवा का मुखौटा ओढा हुआ कारोबार या व्यापार। उसे छोड़कर अगर नेता कसम और प्रतिज्ञा पर ध्यान देने लगे तो उनका असली कारोबार ठप हो जाएगा। स्विस बैंकों का दिवाला निकल जाएगा।
यह भी तुमने ठीक कहा! पार्टी बदलना अब तो गूगल पे करने जितना आसान हो गया है। सत्ता पक्ष पता नहीं कहां उनके गुप्त धन की तरफ ई डी टॉर्च डालेगा, या कहां-कहां आयकर छापे पड़ेंगे या किस मामले में सी बी आई कहां फंसा देंगे….. सोचकर विपक्ष का हर नेता मन में डर पाले हुए है। उस डर के आगे दिखाई न देने वाले भगवान का डर तो कुछ भी नहीं।
सही कहा तुमने! चुनावी सर्वेक्षणों के हिसाब से राजनेता अपने-अपने पक्ष बदलते रहते हैं। सत्ता पक्ष के पास नेताओं को अपने पास में बिठाने की सारी सुविधाएं हैं। इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए। अब ऐसे में हर नेता से कसम की जद्दोजहद से गुजरना पड़ेगा।
सत्ता पक्ष हमेशा से ही उम्मीदवारी वाले नेताओं के आकर्षण का केंद्र रहा है। काफी समय से शुरू हुई दलबदल प्रक्रिया आज अपने विकराल रूप में सुरसा काया बनी हुई है। ऐसे में कोई हनुमान ही आए और सुरसा बनी इस कुरीति का खात्मा करें वरना बरसाती मेंढक की दलदली दलों के गड्ढों में राजनीति के योद्धा नेता कूद-फांद करते रहेंगे। न उन्हें मंदिर, मस्जिद या गिरजे में खाई गई कसम रोक पाएगी और न नैतिकता या वफादारी जैसे शब्द उनके रास्ते में रोड़े अटका सकेंगे। अब राखो लाज हरि।
डॉ टी महादेव राव
विशाखापटनम (आंध्र प्रदेश)
9394290204