एक मुद्दत से ना कोई खत है ना कोई पैगाम है,
खून-ए-दिल आंखों से टपके ना कोई पैगाम है।
मुझे अब ना चैन है ना आराम क्या अर्ज करूं?
जज़्बे का परिंदा क्यों न तड़पे ना कोई पैगाम है।
थरथराती डूबती शाम का अंजाम लिए फिरते रहे,
तारों की निगाह नही चमकी ना कोई पैगाम है।
दिल अब भी गुदाज़ है धड़कन में सो-ओ-साज़ है,
दर्द अफसाना गुनगुनाता रहा ना कोई पैगाम है।
सवाल धरती से पूछा आसमान जवाब दे रहा है,
मुकद्दर का है सितारा रख़्शंदा के यही पैगाम है।
~ बिजल जगड
मुंबई घाटकोपर