क्यों रे …. फिर पाप धोने आ गया।

जब पाप का घड़ा दिखाई देने लगता है तो तीरथ याद आता है। तीरथ में बहुत दान किया ? कभी हिसाब लगाया नहीं। हिसाब लगाने से क्या फायदा? वे दान करवाते गए, हम पाप धोते गए। लेकिन ये नहीं बताया कि कौन से दान से कौन सा पाप धुला? यात्री से पूछ लिया होता कि कौन-कौन से पाप करके आए हो, बता दो? हर पाप की धुलाई अलग लगती है। 

यात्री बहुत चालाक होता है वह नहीं बताता कौन-कौन से पाप करके आया है। वह चाहता है, सब गुप्त तरीके से निपट जाए। पाप का घड़ा फूटे भी नहीं और गंगा में बह जाए। शार्टकट में पाप धोना चाहता है। 

झम्मन कितने पाप धुलवाओगे? गिनती में हों तो बताएं। यहां के लोग पाप धोने में इतने माहिर हैं कि जिसने कभी पाप का नाम भी नहीं सुना हो उसके भी धो देते हैं। जो पाप किए नहीं उन्हें जब धो दिया जाता है तो क्या उनको फिर से करना होगा? अगर नहीं किया तो बैलेन्स कैसे होगा? अगर पता होता कि यहां पाप धोए जाते हैं तो वह पाप करके आता। जानकार पापी हमेशा फायदे में रहता है। ईमानदार सोचता है, ज्यादा धुलाई से पुण्य खराब न हो जाएं। यहां आकर जो पापी नहीं है, उसको भी पाप धोना जरूरी है? 

पाप दान से धोए जाते हैं। दान तीन प्रकार का होता है-ज्ञान दान, धन दान और मतदान। तीनों में मतदान को श्रेष्ठ बताया गया है। ज्ञान दान वट्सएप और फेस बुक पर-अपनों के लिए, अपनों द्वारा और अपनों पर किया जाता है। ज्ञान दान के लिए जरूरी नहीं कि भिक्षुक सामने हो। ज्ञान दान के लिए किसी की वाल पर ज्ञान फेंक दो। उसकी मर्जी है, ले या न ले? तुम्हारा दान सफल हो गया। इस दान का पुण्य पहले की तरह नहीं मिलता। ज्ञान अच्छा नहीं निकला तो पाने वाला उल्टा पड़ सकता है। फिर एक ही उपाय अपने ज्ञान को समेट लो।(‘‘डिलीट फार एवरीवन’’) नहीं तो…….

  दूसरे दान की सबसे बड़ी समस्या है, सुपात्र को ढूंढना। ज्ञान दान की तरह कहीं भी फेंक नहीं सकते और न ही, यहां से उठाया और वहां रख दिया। धन दान के सुपात्र यानी वह व्यक्ति/संस्था, जिसे दान देने से लाभ की उम्मीद हो, उसे सुपात्र कहा जाता है। भिखारियों को दिया गया दान कुपात्र की श्रेणी में आता है। 

अब तीसरा महादान यानी मतदान। यह दान आपकी इच्छा से नहीं समय पूरा होने पर करवाया जाता है। ज्ञान और धन दान की तरह अपनी मर्जी से किसी को दिया नहीं जाता। ज्ञान और धन दान से इसे श्रेष्ठ इसलिए माना जाता है कि क्योंकि यह गुप्त दान होता है। मतदान से मन प्रसन्न होता है, जैसे भोजन के बाद मिल्क केक का टुकड़ा। गुप्त दान की तरह गुप्त रहता है। जो मांगने आए उसे मुस्करा कर आदर से कह सकते हैं, तुम्हीं को दिया है। दान करने से पुण्य का उदय होता है, लेकिन मतदान करने से जरूरी नहीं कि पाप कर्मों का नाश हो जाए? मतदान करने से न तो पाप धुलते हैं, न पुण्य का उदय होता है। जो जहां थे, वहीं रहते हैं। मतदान करने से माली हालत सुधार नहीं होता और न ही घर का बजट बिगड़ता है। 

खैर मतदान इसलिए भी श्रेष्ठ है, क्योंकि इससे पुण्य का उदय हुआ तो नलों में पानी पी टी उषा की तरह दौड़ेगा, बिजली-सूर्य कुमार यादव की तरह चमकेगी, सरकारी सेवाएं घर बैठे मिलने लगेंगी। नई सड़क फिर से नई बना दी जाएगी। इस दान को लुच्चा, लफंगा से लेकर धर्मात्मा तक कर सकता है। दान करने गाड़ी से जातेे हैं और आते पैदल हैं।  

जरूरी नहीं कि मतदान करने से पुण्य के अलावा पाप कर्मों का भी उदय हो सकता है। जब पाप कर्मों का उदय होगा तो सड़क खडंजा बन जाएगी, पानी की लाइन में सीवर का पानी आने लगेगा, खम्बे खड़े रहेंगे, लेकिन प्रकाश नहीं होगा। गलत मतदान से उत्पन्न् पाप कर्मों का नाश पांच साल के बाद हो सकता है। 

पाप कर्मों को दूर करने के उपाय-नगर सेवकों की नकदनारायण सेवा। उनकी बेगार कर प्रसन्न करना। उनके कदम के पीछे कदम मिलाकर चलना। मतदान की साढ़ेसाती पांच साल की होती है। दान से पहले और दान के बाद भी प्रभावित करती है, इसीलिए इसे श्रेष्ठ दान कहा गया है।

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