महाभारत फिर एक बार

फिर एक बार महाभारत हो रहा है 

नैतिकता अपना वजूद खो रहा है

सबको जागते रहो कहते कहते

द्वारपाल गहरी नींद सो रहा है

आजकल हर जगह चीर हरण

दोहराया जा रहा है

धृतराष्ट्र मोह में सिंहासन के

तटस्थ देखा जा रहा है

कौरवों संख्या लगातार बढ़ रही है

पांडवों की गिनती पांच से घट रही है

कुरुक्षेत्र बना जग सारा 

शकुनियों के चंगुल में

अश्वत्थामाओं के अंध क्रोध में

अपना अस्तित्व बचाने की कोशिश में है

द्रौपदियां कृष्ण की प्रतीक्षा में

सरे आम नग्नता ओढ़े बेसुध पड़ी हैं

अभिमन्यु चक्रव्यूह भेदना छोड़

लक्ष्य की तलाश में भटक रहा है

हर जगह दुश्शासन के हाथ

हुए जा रहे है लंबे

दुर्योधन का विकटाट्टहास गूंज रहा है

अपनी प्रतिध्वनियों के जंगल में

युद्ध नहीं रचा जा रहा है षडयंत्र

उचार रहे हैं सभी नैतिकता का मंत्र

त्रिशंकु सा लटकता जनमानस

प्रतीक्षित है आशावादी परिणामों का

न जाने कब द्वारपाल की तंद्रा टूटेगी?

कब धृतराष्ट्र का सिंहासन मोह छूटेगा?

कब बढ़ेगी पांडवों की संख्या?

कौरव सारे कब युयुत्सु बनेंगे?

कब छूटेगा कुतंत्रों भरा दुर्योधनीय शासन?

कब मारा जाएगा भीम के हाथों दुश्शासन?

डॉ टी महादेव राव

विशाखापटनम (आंध्र प्रदेश)

9394290204