नृत्य एवं ताल के आदिरूपों पर एकाग्र तीन दिवसीय निनाद समारोह

भोपाल । मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में नृत्य एवं ताल के आदिरूपों पर एकाग्र तीन दिवसीय निनाद समारोह का आयोजन 18 अगस्त से 20 अगस्त, 2023 तक प्रतिदिन शाम 06.30 बजे से संग्रहालय में किया गया है। इन तीन दिनों में ऐसे नृत्य होंगे जिनमें नृत्य की प्रेरणा के आरंभिक स्त्रोत डंडे का उपयोग प्रमुखता से होता है। समारोह में प्रदेश एवं देश के 9 राज्यों के जनजातीय और लोक नृत्य रूपों की प्रस्तुतियाँ संयोजित की जा रही है। समारोह के दूसरे दिन गीतांजलि चौराहे से डिपो चौराहे तक जनजातीय और लोक कलाकारों की कला यात्रा निकाली गई। समारोह में मध्यप्रदेश, गुजरात, कश्मीर, तेलंगाना, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश, झारखंड, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र राज्यों के जनजातीय एवं लोक नृत्यों की प्रस्तुतियां संयोजित की जा रही है।
समारोह के दूसरे दिन की शुरूआत कलाकारों के स्वागत से की गई। इस दौरान जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, निदेशक डॉ. धर्मेंद्र पारे ,अधिकारी, कर्मचारी और दर्शक उपस्थित रहे। दूसरे दिन 19 अगस्त को कोरकू जनजातीय का ढांढल नृत्य- हरदा, गुसाडी नृत्य-तेलंगाना, राउत नाचा नृत्य- छत्तीसगढ़, सैरा नृत्य- सागर (म.प्र.) , पाई नृत्य – उत्तर प्रदेश, कोलाट्टम नृत्य-आंध्र प्रदेश,उड़ा नृत्य– गुजरात द्वारा लोक और जनजातीय नृत्य की प्रस्तुति दी गई।
गुसाड़ी नृत्य – तेलंगाना
गुसाडी एक जनजातीय लोक नृत्य है। नृत्य के समय विशेष वेशभूषा होती है तथा विविध उत्सवों पर इस लोक नृत्य को किया जाता है। इसमें नृत्य करते समय मोर के पंखों से बनी पगड़ी पहनी जाती है। गुसाडी नृत्य आंध्र प्रदेश में गोंड जनजाति के द्वारा किया जाता है। जिसमें उनके द्वारा मनाये जाने वाले उत्सवों में संस्कृति की स्पष्ट झलक देखने को मिलती है। पर्वों एवं किसी विशेष अवसर पर होने वाले नृत्य और गीत आदि को वे अत्यधिक महत्व देते हैं। गुसाडी नृत्य बहुत आकर्षक है, जो दशहरे के बाद आरम्भ होता है तथा दीपावली तक यह नृत्य किया जाता है।
कोलाट्टम डंडा नृत्य- आंध्र प्रदेश
कोलाट्टम नृत्य में एक क्षेत्र, विशेष रूप से आंध्र प्रदेश की महिलाओं द्वारा देवी को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। कोलाट्टम नृत्य मुख्य रूप से महिलाओं का नृत्य है। कोलाट्टम नृत्य में नर्तक नृत्य की लय बनाए रखने के लिए डंडों का उपयोग करते हैं। सामंजस्य बनाने के लिए इन डंडों को घुमाया जाता है। नृत्य में दल प्रमुख गीत की पहली पंक्ति गाता है और फिर समूह के साथी उसी पंक्तियों को गाना शुरू करते हैं। गोल घेरे में नर्तक आगे-पीछे नृत्य करते हैं और संगीत की लय के साथ थिरकते हैं।
पाई डण्डा नृत्य (उत्तर प्रदेश)
इस नृत्य का उद्गम भगवान कृष्ण द्वारा ग्वालों के साथ खेली गई उस बालक्रीडा से जुड़ा है, जब वे गायों को चराने जाते थे और छोटी-छोटी डंडियों से उनके साथ खेल किया करते थे। इसी खेल ने आगे चलकर पाई डंडा नृत्य का रूप धारण किया। यह नृत्य बुन्देलखण्ड अंचल के महोबा एवं हमीरपुर आदि जनपदों में प्रचलित है। अहीर समुदाय का यह नृत्य कार्तिक मास में दीपावली के अवसर पर पुरुषों द्वारा किया जाता है। वीर रस प्रधान इस नृत्य में पुरुष नर्तक पैरों में और कमर में छोटे-छोटे घुंघरू बांधकर रंगीन कुर्ती पहने ढोल और नगाड़े की थाप पर लाठी एवं डंडों से युद्ध कौशल का प्रदर्शन करते हुए नृत्य करते हैं। ढोल, ताशा एवं मजीरे की लयात्मक ताल पर वृत्ताकार घेरे बनाकर आपस में छोटे-छोटे डड़ों को लड़ाते नर्तकों का यह नृत्य अत्यंत मनोहारी होता है।
राउत नाचा
राउत नाचा छत्तीसगढ़ के राउत समुदाय द्वारा किया जाने वाला कलात्मक समूह नृत्य है। छत्तीसगढ़ अंचल में प्रबोधिनी एकादशी से यह नृत्य शुरू होता है। यह मूलतः प्राचीन भारत के चरवाहा संस्कृति या गोप संस्कृति से जुड़ी परम्परा की याद दिलाता है। इस नृत्य में शौर्य और लालित्य का अनोखा सामंजस्य है।
कोरकू जनजातीय ढांढल नृत्य
ढाँढल कोरकुओं के सर्वप्रिय नृत्य हैं। ढाँढल नृत्य फुरसत के समय चैत्र-वैशाख की रातों में किये जाते हैं। मुद्राओं के आधार पर ढाँढल नाच पाँच प्रकार क्रमशः टाड़ा या ढाकर ढाँढल, पड़ोप ढाँढल, भील ढाँढल, सिडीकू ढाँढल और चाचरीज ढाँढल । वादक घेरे के बाहर होते हैं। नर्तक के हाथ में एक डंडा होता है। डंडे का आघात सामने के घेरे में खड़े नर्तक के डंडे पर होता है। घेरे में खड़े नर्तक गोल-गोल घूमते जाते हैं और डंडे लड़ाते हुए अपने स्थान से छोटे घेरे से बड़े घेरे में बदलते जाते हैं। इस तरह की नृत्य की मुद्रा एक फूल की पंखुरियों के समान खिलती जाती है। ढोलक और टिमकी की थाप के साथ गीत की पंक्तियाँ नर्तक गाते हैं, नाचते हैं और विभिन्न मुद्राओं का प्रदर्शन करते हैं। नृत्य की गति प्रारम्भ में क्षिप्र होती है जो द्रुत में बदल जाती है। नर्तक झींग पर आकर चरम पर समा बाँध देते हैं, नृत्य इसी जगह थम जाता है। नृत्य में ढोल, टिमकी, ढोलक और झाँझ का उपयोग किया जाता है।
सैरा नृत्य, सागर (मध्यप्रदेश )
बुंदेलखंड में श्रावण-भादो में सैरा नृत्य किया जाता है यह पुरुष प्रधान नृत्य है। इस नृत्य में ढोलक, टिमकी, मंजीरा, मृदंग और बांसुरी वाद्य प्रमुख होते हैं। नृत्य के दौरान गोल घूमते हुए पुरुष हाथों में डंडा लेकर नृत्य करते हैं।
उड़ा नृत्य- गुजरात
डांडिया रास गुजराती समुदायों के द्वारा किया जाता है। इस नृत्य की शैली बहुत प्राचीन है और इसमें देवी मां दुर्गा और महिषासुर के बीच हुए युद्ध को दर्शाया गया है और मुख्य रूप से नवरात्रि के शुभ समय के दौरान युगल में किया जाता है। लोग अपनी सर्वश्रेष्ठ पारंपरिक गुजराती पोशाक पहनते हैं और देवी और रक्षक के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करते हुए नृत्य करते हैं। हाथ में डांडिया छोटे छोटे डंडे (डांडिया) को लेकर संगीत की धुन के नृत्य करते हैं।
इस तीन दिवसीय समारोह में प्रतिदिन देश के अन्य राज्यों के नृत्यों की प्रस्तुति दी जायेगी, जिसके अवलोकन हेतु आप संग्रहालय में सादर आमंत्रित हैं एवं प्रवेश निःशुल्क है।