झंडे के नीचे खामोश खड़ी वार्तालाप सुन रही थी,
झंडे ने लहराकर गाया सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा
और तभी कोई बोल पड़ा….
मुझे पहचानते हो….
मैं फांसी का वो फंदा हूँ,
जो जार जार रोया था कभी
उस दिन की फिजा अजीब थी,
जब वीर चढ़े मेरे चौखट पे !!
वो हंसते थे, मैं रोता था,
अंतर्मन के भावों ने भी,
कई बार मुझे यूँ रोका था,
चाल उनकी मतवाली थी !!
पावन धरती की मिट्टी को,
चूमकर कदम बढ़ाते थे,
मातृभूमि की छाती को,
गर्व से झूमता देखा था !!
मैं फांसी का वो फंदा हूँ,
जिसने शहीदों को देखा है,
देश मे उल्लास छाया था,
शहीदों ने आज़ादी दिलायी !!
भगवती सक्सेना गौड़