कुछ खेत दिखे गांव का घर याद आ गया
मिट्टी के रास्तों का सफ़र याद आ गया
दरवाज़े खिड़कियां सभी के बंद देखकर
हमको किसी फ़कीर का दर याद आ गया
इक भीड़ कह रही थी कि पत्थर उठाइए
उस वक्त हमें अपना भी सर याद आ गया
अब दिल पे इख्तियार नहीं है तो क्या करें
सब भूलना चाहा था मगर याद आ गया
अच्छा यही है भूल जाएं गुज़रे वक्त को
आएगा बहुत याद अगर याद आ गया
कुछ सांप जंगलों में खुद ही लौटने लगे
ज़्यादा है आदमी में ज़हर याद आ गया
मुद्दत के बाद उनसे आज मिल गई नज़र
हम खुद को भूल आए किधर याद आ गया
आई नहीं दौलत भी किसी काम तो उसको
होता है दुआओं में असर याद आ गया
रवि ऋषि
दिल्ली