( स्त्री विमर्श )
बालियाँ तेरे हर किरदार को,
शाबाशियाँ तेरे अस्तित्व को,
शाबाशियाँ बेटी, बहन,बहू,पत्नी,माँ
और सुगढ़ ग्रहणी के रूप में,
निभाए गए अपनत्व को,
शाबाशियाँ जब तू समाज की,
जिम्मेदार नागरिक बनी,
शाबाशियाँ तेरे अध्ययन‐अध्यापन के,
हर निर्मल प्रयास को,
शाबाशियाँ जिंदगी के,
हर उतार-चढ़ाव के बावज़ूद,
तेरे नन्हे मासूमों से जुड़े घनत्व को !
शाबाशियाँ हर सुबह मुस्कुराते हुए,
आस-पास के हर जीवन में,
मुस्कान भरने को,
शाबाशियाँ तेरी तपिश,
तेरी मुश्किलों, तेरे जज्बे को,
शाबाशियाँ अनगिनत जीवन सँवारने को,
तू अनमोल है हर रूप में,
शाबाशियाँ हर रूप में तेरे किरदार को ।
भावना अरोड़ा ‘मिलन’