अपनो से ही हारता आदमी

मत पूछो.. …?

बस जिंदगी जी रहा हैं आदमी

हंस भी रहा हैं ..दिन भर

सब देखते भी है

सुखी. .. ‌खुशहाल . ‌.. सफलता का

उदाहरण भी देते हैं…उसका

परन्तु…….

पत्नी को भी पता नहीं चलता… 

अन्धेरे में कितने आंसू बहा जाता हैं आदमी. ‌।

अपने होने का अहसास

जबरण  महसूस करता है आदमी…

पैसा कमाते हुए भी

नहीं जी पाता अपनी जिंदगी… आदमी ।

किसी को भी चिंता नही…

चाहे पत्नी हो या बच्चे

वह सब के लिए कमाता है

अधिकार से सब 

अपनी आवश्यकता को पूरा करते है…।

अपने मन की बात कहने पर…

नफ़रत भी सहता

दुत्कार खा कर भी

रिश्ते निभाने के लिए

ख़ामोश हो जाता है आदमी.. ।

दोष किसी का  भी नहीं…

हवा ही कुछ ऐसी चल पड़ी है.. 

मोबाइल की घंटियों की

सरसराहट में

ज़िन्दगी तलाशी जाती है

अपनों पर अविश्वास

यूट्यूब पर विश्वास…

अक्लमंद रिश्तों में…

पिस्ता रह जाता है आदमी. ।

बस हंसने का मुखौटा लगाए…

अपनों के हाथों ही.. 

सिमटता… कुचलता..

अपने से ही हार रहा है आदमी…।

कितना विवश हैं आदमी….??

*****

रमेश कुमार संतोष