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छूकर अंबर आएं पंछी अंबर से मुलाक़ात कर,
छूकर ज़मी बैठ गए दरख्त की शाख पर l
निड़ में विश्राम कर उड़ गए गगन से बात कर,
सांझ ढले वापस लौटे अंबर से मुलाक़ात कर ll
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टकटकी लगाएं देख रहे जैसे तारों की बारात पर,
चाँद धवल चाँदनी उज्जवल कैसे अंबर की सौगात पर l
टकटकी लगाकर क्या खोज रहे किसको याद कर,
सुबह की फिजां में घुल जाने की चाहत पर ll
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ना नींद आएं बस अलबेले अंबर की नज़रात पर,
माँ सुलाएं थपकी से पर उड़ना ही भाएं रात पर l
जैसे – तैसे रात ढली पंछी के पास अनन्य विकल्प,
मन ही मन हर्षाएं अंबर से मुलाक़ात पर ll
दीपिका तिवारी