झाबुआ | प्राचीन काल से जिले में आयोजित होने वाले विभिन्न धार्मिक एवं सांस्कृतिक आयोजनों में शंभू माता मेला महत्वपूर्ण स्थान रखता है। जिले के मेघनगर जनपद क्षैत्र के ग्राम देवीगढ़ स्थित श्री स्वयभू माता (शंभू माता) मंदिर क्षेत्र में आयोजित होने वाला श्री शंभू माता मवेशी मेला प्राचीन काल से ही आयोजित होता आया है। मध्य रात्रि को हालांकि मेले का समापन हो गया, बावजूद इसके मेले में रौनक बरकरार रही। चार दिवसीय इस मेले में जिले के दूरस्थ अंचलों सहित राजस्थान एवं गुजरात के सीमावर्ती क्षेत्रों से बड़ी संख्या में लोग पहुंचे और स्वयंभू माता के दर्शन कर मेले का लुत्फ उठाया। मेले को देखते हुए स्थानीय पुलिस और प्रशासन द्वारा व्यापक रूप से व्यवस्थाएं की गई थी।
जनजातीय समुदाय में माताजी का मेला और खास तौर पर मोटा मेला के नाम से प्रसिद्ध दैवीगढ़ में करीब एक शताब्दी से भरने वाला उक्त मेला धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से संपूर्ण जिले में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है, जिसमें दूरस्थ स्थानों से जनजातीय समुदाय के लोग पहुंचते हैं।
उल्लेखनीय है कि जिले के मेघनगर जनपद क्षैत्र अंतर्गत देवीगढ़ का स्वयंभू माता मंदिर किसी समय गहन वनों से आच्छादित अत्यन्त दुर्गम इलाकों में एक रहा है। पद्मावती नदी के किनारे लगभग 150 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित यह देवी मंदिर तंत्र साधना एवं तंत्र विद्या के लिए प्रसिद्ध रहा है। प्राकृतिक रूप से निर्मित गुफा में शेर के आवास के साथ ही यहां अन्य अनेक जंगली जानवरों का भी आवास रहा है। समय के साथ इस क्षेत्र में वनों का विनाश होने लगा, ओर मानव बस्तियां भी विकसित हुई , किन्तु पर्यावरणीय परिवर्तन के दौर में भी इस स्थान का धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व अबतक बरकरार बना हुआ है, और मंदिर में जनजातीय समुदाय द्वारा परंपरागत रूप से की जाने वाली पूजा अर्चना एवं अनुष्ठान का क्रम अब भी जारी है।
ग्राम देवीगढ़ में लगने वाले मेले के दौरान राजस्थान ओर गुजरात के सीमावर्ती क्षेत्रों सहित बड़ी संख्या में जिले के दूरस्थ अंचलों से दर्शनार्थी यहां दर्शनार्थ आते हैं। प्राचीन काल में जिले में वृहत् रूप से होने वाले धार्मिक एवं सांस्कृतिक आयोजनों में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले देवी स्थान श्री स्वयभू माता मंदिर प्राचीन समय में तंत्र साधना एवं तंत्र विद्या के लिए प्रसिद्ध रहा है, ओर इस मंदिर क्षेत्र में मेले का इतिहास भी पुराना है। कहा जाता है कि स्वयं भू माता राजवंशों की कुलदेवी के रूप में पूजित थी ओर तत्कालीन राजवंश द्वारा मेला शुरू किया गया था, जो कि शताब्दी बीतने के बाद भी जारी है।