एकल परिवार से बेहतर कुछ नहीं

प्रसिद्ध निर्माता-लेखक अभिज्ञान झा, , मानते हैं कि संयुक्त परिवार के विरोध में तो नहीं हैं, लेकिन यदि व्यक्ति को आगे बढ़ना और विकास करना है तो एकल परिवार से बेहतर कुछ नहीं।उन्होंने कहा, “हमारी संस्कृति में कुछ गहराई से टूटा हुआ है, जिसे हम स्वीकार ही नहीं करना चाहते। ये राजनेताओं की वजह से नहीं है, ना शिक्षा प्रणाली की वजह से, और ना ही धर्म की वजह से। भारत में सबसे बड़ा सेंसरशिप ‘परिवार’ है। विशेष रूप से उसे सवालों से परे मानना। एक बुनियादी बात से शुरू करता हूं — माता-पिता पर मज़ाक करना आज भी इतना बड़ा मुद्दा क्यों है? रणवीर (अल्हाबादिया) ने अपने माता-पिता को लेकर कुछ हल्के-फुल्के मज़ाक किए और इंटरनेट फट पड़ा। क्यों? क्या वे अभद्र थे? हो सकता है। लेकिन ये व्यक्तिगत संवेदनशीलता का मामला है। असली मुद्दा इससे गहरा है — हमें बचपन से सिखाया गया है कि माता-पिता — और विस्तार में पूरा परिवार — आलोचना से परे हैं। वे पवित्र हैं। जैसे भगवान।”