इंदौर, १३ दिसंबर (ईएमएस)। एक मिथक लंबे समय से चला आ रहा है कि उज्जैन का सिंहस्थ मेला प्रदेश का मुख्यमंत्री बदल देता है। २०१६ के सिंहस्थ के बाद हुए इस चुनाव में फिर प्रदेश का मुख्यमंत्री और उसके साथ सरकार भी बदली है।
सिंहस्थ का इतिहास बहुत लंबा है। मध्यप्रदेश में अप्रैल, मई १९६८ में सिंहस्थ पर्व आया था, इस दौरान गोविंद नारायणसिंह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे, लेकिन सिंहस्थ के बाद उनके हाथ से प्रदेश की सत्ता चली गई औरर मुख्यमंत्री पद से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। फिर मार्च अप्रैल १९८० में सिंहस्थ हुआ, इस दौरान प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार थी और सुंदरलाल पटवा मुख्यमंत्री थे, लेकिन वुंâभ मेले के बाद वे एक महीने तक भी मुख्यमंत्री नहीं रह पाए और उनकी सरकार चली गई। १९९२ में सिंहस्थ का आयोजन हुआ और इस दौरान सुंदरलाल पटवा भाजपा के मुख्यमंत्री थे और तब बाबरी मस्जिद विध्वंस की वजह से सरकार बर्खास्त कर दी गई। २००४ में सिंहस्थ का आयोजन हुआ और इसकी तैयारी २००३ दिग्विजयसिंह ने ही शुरू करवाई थी और सिंहस्थ के पहले ही उनकी सरकार चली गई। २००४ में उमा भारती मुख्यमंत्री बनीं और उन्होंने सिंहस्थ पर्व संपन्न करवाया, लेकिन उबली के तिरंगा मामले में गिरफ्तारी वारंट जारी होने के कारण उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा और बाबूलाल गौर कुछ समय के लिए मुख्यमंत्री बने। २०१८ से पहले २०१६ में सिंहस्थ का आयोजन हुआ था और सिंहस्थ के बाद फिर शिवराज को मुख्यमंत्री पद से विदा होना पड़ा।
(उमेश/अर्चना पारखी)