इंदौर (राजेन्द्र के.गुप्ता) केन्द्र और राज्य के आर्थिक सहयोग से इंदौर नगर पालिका निगम द्वारा महत्वावकांक्षी सीवरेज प्रोजेक्ट योजना की शुरुवात वर्ष 2007-08 में की थी, तब इसका बजट 750 करोड़ था, जो अब तक बढ़ कर ढाई हजार करोड़ से भी अधिक हो गया है । शहर में इसके बड़े-बड़े पाईप जमीन के नीचे कहा डाले (दफन) गए है, इसका पता निगम के उन जिम्मेदार अफसरों को भी नही होता है, जिनकी देख रेख और निगरानी में इसका निर्माण किया गया है । मामला इसी प्रोजेक्ट की सीवरेज लाईन जोड़ने के लिए पंडरीनाथ चौराहे पर दो जगह चल रहे निर्माण कार्य का है । निर्माण सुधार की स्थिति भी वही है, जो पहले थी !सीवरेज लाईन को एक जगह से दूसरी जगह जोड़ने के लिए लाईन ढूँढना पड़ रही है, ऐसी ही स्थिति विजय नगर चौराहा पर बनी थी । पंडरीनाथ चौराहे पर इसके लिए पिछले दो महीने से मुख्य रोड़ पर 20 से 25 फीट गहरे गडडे खोदे हुए है। दोनो गडड़ों के चारों तरफ टीन के पतरों से घेरा बनाया हुआ है । बस मिट्टी बाहर निकालने के लिए थोड़ा सा रास्ता बनाया हुआ है । गहरे गड़ड़ों में अंदर ही अंदर सुरंग बना कर लाईन जोड़ने की कोशिश की जा रही है । गड़ड़ों में क्रेन की सहायता से बड़े और भारी पाईप उतारें जा रहे है । इस हाई रिस्की लेबर वर्क के लिए कुछ नाबालिग बच्चों को भी काम पर लगा रखा है । इन्हें इतने गहरे गडडे में उतरने के लिए सीढ़ियाँ भी नही लगाई गई है, ना ही सुरक्षा के कोई इंतजाम है । ये नाबालिग मजदूर बच्चे उस प्लाय के सहारे ही गहरे गड़डें में नीचे उतरते है, जिसको गड़डें के अंदर की मिट्टी धसने से रोकने के लिए लगाया गया है । इतने गहरे गड़डें में जमीन के अंदर ही अंदर पाईप लाईन जोड़ने के लिए सुरंग भी खोदी गई है । इस सुरंग में घुसने के लिए किसी भी तरह के आक्सीजन मास्क की व्यवस्था मौके पर नही की गई है, ना ही बचाव के अन्य साधन उपलब्ध है और ना ही प्राथमिक उपचार की व्यवस्था है । इतने हाई रिस्की काम कर रहे इन नाबालिग बच्चों को कार्यवाही का डर दिखा कर, अपने नाम और उम्र बताने की मनाही है । जो फोटो, वीडियो बनाने पर अपने चहरे छुपाने लगते है । जहाँ यह निर्माण कार्य चल रहा है, वही पर पड़े पाईप इनके निवास स्थान बने हुए है। ये यही रहते है ,सोते है और यही खाना बना कर खाते है । इंदौर में ड्रेनेज चेंबर सहित अन्य काम करते हुए कई गरीब मजदूरों की जान जा चुकी है । सड़क किनारे खुदे छोड़े गए गड़डें आम नागरिक की जान भी ले चुके है । ऐसा लगता है जिम्मेदार अफसरों को मोटी तनख़्वाह, सुविधाओं पाने और वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करवाने से ही मतलब है, गरीब मजदूर कर्मचारी की जान से कोई लेना-देना नही है, ना ही नियम, कानून का पालन करवाने-देखने की इनकी जिम्मेदारी है । यहा नाबालिग बच्चें, बड़े मजदूर सभी अपनी जान जोखिम में डाल कर, रोज खतरों से खेल रहे है । दो महीने से भी अधिक समय से काम चल रहा है, निश्चित ही जिम्मेदार अफसर निरीक्षण करने आए होगे, इतने बड़े काम को मजदूरों के जिम्मे तो सौंपा नही होगा ? पर उन अफसरों की नजर काम कर रहे नाबालिग बच्चों पर पड़ी ना हो, ऐसा कैसे हो सकता है ? कितने मजदूर काम कर रहे है ये उनकी तनख़्वाह देते समय भी पता चल जाता है । यह भी कह सकते है जिम्मेदार अफसरों के द्वारा बाल मजदूरी करवाई जा रही है। अफसर ठेकेदार पर ठीकरा फोड़ कर अपनी जिम्मेदारी से कैसे बच सकते है । वो भी तब जब उन्होंने अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए इस मामले को लेकर कोई कार्यवाही नही की है । शिकायत करने के लिए सरकार ने किसी की जिम्मेदारी भी तय नही की है । ऐसा लगता है जिम्मेदार अफसर गरीब की मौत से कोई सबक नही लेते है, हालात कह रहे है ना ही उसकी उनको फिक्र रहती है। गरीब के लिए परिणाम आने तक लड़ता भी कौन है, मौत होने पर दो दिन खबर छप कर गायब हो जाती है…..किसी गरीब की एक और मौत होने तक….। मरने वाले गरीब के परिजन खुद लड़ाई लड़ने के लिए सक्षम होते या समझ रखते तो वो अपने बच्चों को मौत के मुँह में मजदूरी कर पेट पालने नही भेजते । ऐसा लगता है कुछ पैसे बचाने के लिए बड़े अफसर और बड़े ठेकेदार गरीब की जान से खेल रहे है ।