कल मेरे एक दोस्त ने पूछ लिया
आजकल आप कवितायेँ नहीं लिखते?
मैने कहा/बात तो सच है
पर ऐसा नहीं है कि लिखना नहीं चाहता
सच तो यह है कि
लिख ही नहीं पा रहा हूँ
बिम्ब और शब्द दोनों ही रुठे बैठे हैं
मैने कल ही पूछा था
क्यों साथ नहीं दे रहे तुम दोनों
कोई वजह हो तो बताओ
तुम दोनों के कारण
मैं कुछ लिख नहीं पा रहा हूँ
सृजन नहीं कर पाने की जो पीड़ा है
वह,मुझे अंदर ही अंदर साल रही है
बस मैं इससे निजात पाना चाहता हूँ
प्लीज मेरी सहायता करो
मेरी बात सुनकर दोनों संजीदा हो गये
और दोनों ने एक साथ कहा
मित्र,हम तो हमेशा ही तुम्हारे साथ हैं
हम कब तुमसे अलग हुए हैं
दर असल सम सामयिक स्थितियों पर
बार बार हमारा इस्तेमाल
अब हमें उबाऊ लगने लगा है
हम कोई क्रांति तो कर नहीं पा रहे हैं
ना ही कोई बदलाव ला पा रहे हैं
हमे ऐसा लगने लगा है मानों
हमारा कोई वज़ूद ही नहीं है
संख्याओं को छोड़ दें तो
शून्य की भी अहमियत होती है
और हमारी तो कुछ भी नहीं है
बस हम अब बदलाव चाहते हैं
इसलिये गुज़ारिश है तुमसे
अब तुम प्रेम, मोहब्बत और ज़ज्बात
की बातें लिखो/बार बार लिखो
हम तुम्हे पूरा सहयोग देंगे
सच कहूँ तो आज इसी की ज़रुरत है
यही समय की माँग है
वक़्त का तकाजा भी है
अब तय तुम्हे करना है मित्र
हम तो तैयार बैठे हैं
तुम्हारे ईशारों पर थिरकने के लिए
तुम्ही तो निर्देशक हो हमारे
राजेश कुमार सिन्हा
बान्द्रा(वेस्ट),मुंबई-50