चाँद मिलने आया था

एक ख्वाहिश थी चाँद से मिलने की,वह परसो मिलने आया। 

सोलह कलाओ से परिपूर्ण,हल्की ठंडक भी साथ ले आया।।

शरद पूर्णिमा का वो चाँद, देख उसे  कंक्रीट का जंगल महक उठा। 

उसे देख खुश हुआ शहर समूचा,वो खिड़की  के आगे ठहर गया।।

नव पौधों से विशाल वृक्ष तक, सभी वन शरद चांदनी में खोने गये।

कभी चाँद को निहार रहे,तो कभी चाँदनी की अमृत वर्षा में डूब गये।। 

खीर का हाल ना पूछो अब तुम, देख चंद्रमा को बोरा गई। 

गो दुग्ध से निर्मित होकर उसने, शशि किरणो की आस भरी।। 

 हिमकर को देख खुश होने लगे, चावल करने लगे अनेकों करतव। 

केशर किसमिस तो मिलकर के, फ़िर लगे मनाने कौमुदी महोत्सव।। 

कलानिधि की कलाऐ, जिस जल को छू लेती अमृत का गुण भर देती।

निशापति की उज्ज्वल किरणें, निराशा के मेघों का भी तम हर लेती ।। 

                                 आशुतोष शर्मा ‘गुलशन’

                                          राजस्थान