कविता-गुरु महिमा।

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गुरु आप नहीं,तो जन जग का अस्तित्व नहीं!

गुरु  आप  नहीं,  तो  ईश्वर  का अस्तित्व नहीं !

भक्ति शक्ति योग साधना विज्ञान कौन बताएगा !

मूर्त-अमूर्त चेतन-अवचेतन 

ठोस-तरल,  धर्म  का  सार,

सत्य का सार,प्रकृति-विचार का 

गूढ़   दीदार   कौन     कराएगा ?

यदि आप नहीं तो-

हिम जल का अर्थ कौन बताएगा ?

जन-जीव-जंतु-

निर्मित तन का तार कौन  बताएगा ?

ईश्वर है या प्रकृति श्रेष्ठ-

यह सवाल कौन सुलझायेगा ?

दुख दूर, जब आप से

अष्टांगिक मार्ग का उपदेश मिले…

ज्ञान असीम है, यदि आप नहीं… 

कोई खुद को जान ना   पाएगा !

भटके  दर-दर,

भाल  को कोसे , 

गुरु ज्ञान बिन, 

भाग्य नहीं कोई बना पाएगा !

यदि साथ उसे मिला,

नवनिर्मित ज्ञान कलश बन जायेगा,

स्नेहाशीष   व शिक्षण-प्रशिक्षण से- 

शिष्य     को     भरपूर           कर,

दुख के जहर से इंसान की जान बचायेगा !

शोध करे!

संवाद करे !

खुले विचारों से कटु  प्रहार  करे  !

आप ज्ञान दे दो:

छीनी हथौड़े से , 

मूर्ति को साकार करे,

बने दशरथ मांझी या-

अशोक स्तंभ का  शिल्पकार  बने, 

कुछ है जो ज्ञान-पुष्प, पास हमारे,

आपके  श्री  चरणों  में  रखता  हूँ, 

कर्म  धर्म ज्ञान उपकार, प्रेम, 

गुरुवर आपसे जो सीखा  हूँ! 

पागल रोगी, 

गरीब लचार-

का ख्याल रखों,

लिंगभेद छुआछूत, 

अपने मन से दूर रखो|

बाबू   अफसर   जब  बन  जाना,

मेहनत ईमान से काम को करना, 

जब बात चले तुम्हारी शादी  की

निर्धन    घर     की   बेटी   लाना, 

दहेज प्रथा जड़ से मिटे, 

ऐसा  कुछ  उपाय करो, 

सुरक्षित सफर करें हर लड़की

ऐसे संस्कारों  का निर्माण  करो, 

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ऋषि कुमार ‘प्रभाकर’

पता-खजुरी खुर्द 

कोरांव प्रयागराज

मो. 9569985275