अजी,शादी को मैं क्या समझू ? एक संस्कार या कुछ और…..

 कर्नाटक हाईकोर्ट ने ’निकाह’ को एक ’अनुब्ंाध बताया है। कुछ इसी प्रकार की एक दुःखद घटना मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल मंे हुई,जिसमें  एक परिवार ने अपने लड़के का निकाह किया और जो ’नववधु’ उनके घर आई उसे कहा-’तुम्हे ’ट्रायल’ पर छःमाह के लिए रखा है, तुम इस घर की परमानंेंट बंहू नहीं हो’ । मानो उसे किसी  मातहत की  तरह संविदा नियुक्ति पर रखा  है। उल्लेखनीय ही है कि लड़की के पिता ने उसकी शादी में 50 लाख रूप्ए से अधिक की रकम खर्च की है। 

अब सवाल यह है कि क्या लड़की किसी ’साबुन की टिकिया’ की तरह है,जिसके बारे में यह कहा जाए कि -’पहले इस्तमाल करो, और फिर विश्वास करो’? यकीनन हमारे देश में शादी को एक अनुबंध नहीं, बल्कि एक संस्कार का दर्जा प्राप्त है।जो ’सोलह संस्कार’ है, उनमें एक संस्कार -’शादी’ भी है।   मैं ठहरा एक व्यंग्यकार । मेरी नजर में तो शादी एक संस्कार तो है ही,इसके अलावा  कुछ और   भी है।   मैं चाहता हूं कि वे अपनी पहली फुर्सत में थोड़ा ये समझ लें कि शादी यानी क्या? क्योंकि मैंने भी पढ़ा था कि शादियां तो आसमान में तय होती है, यहां तो सिर्फ फेरे पड़ते हैं। शादी करना एकदम आसान है, लेकिन उसे समझकर निभाना उतना ही कठिन है। शादी की बात चली है तो बता दूं कि एक विदेशी विद्वान ने कहा है कि-’’शादी एक लॉटरी है। यदि अच्छी पत्नी मिल जाए तो समझ लीजिए कि अपनी लॉटरी लग गई। यदि किसी पत्नी को अच्छा पति नहीं मिला तो वह यह समझ ले कि लॉटरी किसी दूसरे के नाम लग गई।’’ मेरे एक व्यंग्यकार मित्र की शादी हुई। शादी के कुछ ही दिनों बाद उसने कहा-’’शादी ’प्याज’ की तरह है। अर्थात्-’आंसू’ और ’आनंद’ साथ-साथ।’’मुझे लगता है कि शादी यानी  दो परिवारों का  ’’एक कॉकटेल’’ है’।क्योंकि जब लडका और लडकी ( दो परिवार) आपसे  में मिलतेहै तो वे एक ’’नए कॉकटेल’’ को जन्म देते है। 

जब कभी शादी के बारे में हमारे बुजुर्गों से बात करो तब वे यही कहते हैं कि-’’बेटा, शादी एक ढंका हुआ मिष्ठान है और इसे खाने पर किसी को ’डायबिटीज’ (शकर की बीमारी) नहीं होती।’’ मित्रों, शादी के मामले में मनोवैज्ञानिकों का मत थोड़ा अलग है। वे कहते हैं कि-’’दुनिया में आए हो तो शादी अवश्य करो। यदि तुम्हारे भाग्य से तुम्हारी ’जोड़ी’ जम गई तो तुम सुखी हो जाओगे और यदि दुर्भाग्य से जोड़ी नहीं जमी तो तुम ’तत्वज्ञानी’, व्यंग्यकार या भविष्यवक्ता बन जाओगे। सच कहा जाए तो ये तीनों ही स्थितियां समाज के लिए एकदम अनुकूल है। दरअसल विवाह एक ऐसा विश्वविद्यालय है, जो पुरुषों की ’बेचलर डिग्री’ छीन लेता है, जबकि स्त्री को ’मास्टर डिग्री’ दे देता है।’’ 

शादी के मामले में सेना के कमाण्डर का विचार एकदम जुदा है। वे कहते हैं कि-’’शादी के समय ’पति’ या ’पत्नी’ चुनते समय और ’युद्ध की योजना’ करते समय केवल एक गलती हो जाए तो आजीवन पछताना पड़ता है, इसीलिए मेरी मान्यता है कि विवाह एक साहसिक कार्य है, जिसे बुजदिल कभी कर नहीं सकते।’’

मेरे एक मित्र के शादी की बात चल रही थी। वह असमंजस में था कि अपने लिए कैसी लड़की (वधु) पसंद करे। उसने अपनी यह समस्या दादाजी को बताई, तब उन्होंने कहा-’’बेटा, तुम अपने लिए पत्नी का चयन करते समय मेरी बात हमेशा याद रखना कि किसी ’सुचरित्र मां’ की बेटी को ही अपना जीवनसाथी बनाना।’’ दादाजी की यह बात सुनकर वह और अधिक असमंजस में पड़ गया कि अब लड़की को देखने से पहले, उसकी मां के कैरेक्टर की गहनता से जांच कैसे करूं? क्या उसके लिए कोई ’प्रायवेट जासूस’ नियुक्त करूं? 

शादी के मामले में कुछ मनचले युवकों की राय बहुत मजेदार है। वे कहते हैं कि-’’विवाह एक ’सर्कस’ है, इसके तम्बू में ’तीन रिंग’ होती है। पहली-’एंगेजमेंट रिंग’, दूसरी-’वेडिंग रिंग’ और तीसरी-’सफरिंग’, जिसमें वे जीवनभर झूलते रहते है।’’ एक पंडितजी से मैंने पूछा की-’गुरुजी, शादी यानी क्या?’ वे जबाव में बोले-’’वत्स, शादी एक सार्वजनिक घोषणा है कि फलां-फलां नाम का लड़का और अमुक-अमुक नाम की लड़की अब ’अविवाहित’ नहीं रहे।’’

विवाह उर्फ शादी के बारे में मैंने दुनियाभर के विद्वान लोगों के मत आपके सामने रख दिए हैं। अब आपको तय करना है कि वास्तव में शादी यानी क्या? क्योंकि एक शादी हमें सैकड़ों अच्छे-बुरे अनुभवों का खजाना देती है और ये खजाना ’कुंवारा’ रहकर हासिल नहीं किया जा सकता। आपको मेरी बात पर यकीन आए इसलिए बता दूं कि समझदार लोग बाकायदा इस खजाने का ’एलबम’ बनाकर रखते हैं और बीच-बीच में समय निकालकर उसे देखते ही रहते हैं। उपरोक्त आधार पर मुझे लगता है कि शादी वाकई एक संस्कार है, कोई संविदा नियुक्ति  नही! 

डॉ. विलास जोशी

1296/5, नंदानगर, इन्दौर 

अजी,शादी को मैं क्या समझू ?  एक संस्कार या कुछ और….. ?  

 कर्नाटक हाईकोर्ट ने ’निकाह’ को एक ’अनुब्ंाध बताया है। कुछ इसी प्रकार की एक दुःखद घटना मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल मंे हुई,जिसमें  एक परिवार ने अपने लड़के का निकाह किया और जो ’नववधु’ उनके घर आई उसे कहा-’तुम्हे ’ट्रायल’ पर छःमाह के लिए रखा है, तुम इस घर की परमानंेंट बंहू नहीं हो’ । मानो उसे किसी  मातहत की  तरह संविदा नियुक्ति पर रखा  है। उल्लेखनीय ही है कि लड़की के पिता ने उसकी शादी में 50 लाख रूप्ए से अधिक की रकम खर्च की है। 

अब सवाल यह है कि क्या लड़की किसी ’साबुन की टिकिया’ की तरह है,जिसके बारे में यह कहा जाए कि -’पहले इस्तमाल करो, और फिर विश्वास करो’? यकीनन हमारे देश में शादी को एक अनुबंध नहीं, बल्कि एक संस्कार का दर्जा प्राप्त है।जो ’सोलह संस्कार’ है, उनमें एक संस्कार -’शादी’ भी है।   मैं ठहरा एक व्यंग्यकार । मेरी नजर में तो शादी एक संस्कार तो है ही,इसके अलावा  कुछ और   भी है।   मैं चाहता हूं कि वे अपनी पहली फुर्सत में थोड़ा ये समझ लें कि शादी यानी क्या? क्योंकि मैंने भी पढ़ा था कि शादियां तो आसमान में तय होती है, यहां तो सिर्फ फेरे पड़ते हैं। शादी करना एकदम आसान है, लेकिन उसे समझकर निभाना उतना ही कठिन है। शादी की बात चली है तो बता दूं कि एक विदेशी विद्वान ने कहा है कि-’’शादी एक लॉटरी है। यदि अच्छी पत्नी मिल जाए तो समझ लीजिए कि अपनी लॉटरी लग गई। यदि किसी पत्नी को अच्छा पति नहीं मिला तो वह यह समझ ले कि लॉटरी किसी दूसरे के नाम लग गई।’’ मेरे एक व्यंग्यकार मित्र की शादी हुई। शादी के कुछ ही दिनों बाद उसने कहा-’’शादी ’प्याज’ की तरह है। अर्थात्-’आंसू’ और ’आनंद’ साथ-साथ।’’मुझे लगता है कि शादी यानी  दो परिवारों का  ’’एक कॉकटेल’’ है’।क्योंकि जब लडका और लडकी ( दो परिवार) आपसे  में मिलतेहै तो वे एक ’’नए कॉकटेल’’ को जन्म देते है। 

जब कभी शादी के बारे में हमारे बुजुर्गों से बात करो तब वे यही कहते हैं कि-’’बेटा, शादी एक ढंका हुआ मिष्ठान है और इसे खाने पर किसी को ’डायबिटीज’ (शकर की बीमारी) नहीं होती।’’ मित्रों, शादी के मामले में मनोवैज्ञानिकों का मत थोड़ा अलग है। वे कहते हैं कि-’’दुनिया में आए हो तो शादी अवश्य करो। यदि तुम्हारे भाग्य से तुम्हारी ’जोड़ी’ जम गई तो तुम सुखी हो जाओगे और यदि दुर्भाग्य से जोड़ी नहीं जमी तो तुम ’तत्वज्ञानी’, व्यंग्यकार या भविष्यवक्ता बन जाओगे। सच कहा जाए तो ये तीनों ही स्थितियां समाज के लिए एकदम अनुकूल है। दरअसल विवाह एक ऐसा विश्वविद्यालय है, जो पुरुषों की ’बेचलर डिग्री’ छीन लेता है, जबकि स्त्री को ’मास्टर डिग्री’ दे देता है।’’ 

शादी के मामले में सेना के कमाण्डर का विचार एकदम जुदा है। वे कहते हैं कि-’’शादी के समय ’पति’ या ’पत्नी’ चुनते समय और ’युद्ध की योजना’ करते समय केवल एक गलती हो जाए तो आजीवन पछताना पड़ता है, इसीलिए मेरी मान्यता है कि विवाह एक साहसिक कार्य है, जिसे बुजदिल कभी कर नहीं सकते।’’

मेरे एक मित्र के शादी की बात चल रही थी। वह असमंजस में था कि अपने लिए कैसी लड़की (वधु) पसंद करे। उसने अपनी यह समस्या दादाजी को बताई, तब उन्होंने कहा-’’बेटा, तुम अपने लिए पत्नी का चयन करते समय मेरी बात हमेशा याद रखना कि किसी ’सुचरित्र मां’ की बेटी को ही अपना जीवनसाथी बनाना।’’ दादाजी की यह बात सुनकर वह और अधिक असमंजस में पड़ गया कि अब लड़की को देखने से पहले, उसकी मां के कैरेक्टर की गहनता से जांच कैसे करूं? क्या उसके लिए कोई ’प्रायवेट जासूस’ नियुक्त करूं? 

शादी के मामले में कुछ मनचले युवकों की राय बहुत मजेदार है। वे कहते हैं कि-’’विवाह एक ’सर्कस’ है, इसके तम्बू में ’तीन रिंग’ होती है। पहली-’एंगेजमेंट रिंग’, दूसरी-’वेडिंग रिंग’ और तीसरी-’सफरिंग’, जिसमें वे जीवनभर झूलते रहते है।’’ एक पंडितजी से मैंने पूछा की-’गुरुजी, शादी यानी क्या?’ वे जबाव में बोले-’’वत्स, शादी एक सार्वजनिक घोषणा है कि फलां-फलां नाम का लड़का और अमुक-अमुक नाम की लड़की अब ’अविवाहित’ नहीं रहे।’’

विवाह उर्फ शादी के बारे में मैंने दुनियाभर के विद्वान लोगों के मत आपके सामने रख दिए हैं। अब आपको तय करना है कि वास्तव में शादी यानी क्या? क्योंकि एक शादी हमें सैकड़ों अच्छे-बुरे अनुभवों का खजाना देती है और ये खजाना ’कुंवारा’ रहकर हासिल नहीं किया जा सकता। आपको मेरी बात पर यकीन आए इसलिए बता दूं कि समझदार लोग बाकायदा इस खजाने का ’एलबम’ बनाकर रखते हैं और बीच-बीच में समय निकालकर उसे देखते ही रहते हैं। उपरोक्त आधार पर मुझे लगता है कि शादी वाकई एक संस्कार है, कोई संविदा नियुक्ति  नही! 

डॉ. विलास जोशी

1296/5, नंदानगर, इन्दौर