लक्ष्मीबाई

तेईस मार्च सन अट्ठावन में लिख गई अमर कहानी

मणिकर्णिका नाम की वो लक्ष्मीबाई मर्दानी !

पति के मृत्यु बाद गोरों ने सत्ता पर अधिकार किया,

पुत्र दामोदर राव के स्वामित्व को अस्वीकार किया !!

अग्रेजों के हुक्म को सुन रानी का लहू उबलता है,

मानों जलती ज्वाला में अग्नि का वेग मचलता है !

वह द्रुत दामिनी सी गरज उठी अंग्रेज़ी शासन से बोली-

इस झाँसी की पावन रज में है मेरे मस्तक की रोली !!

जब तक दिनकर में ऊष्मा है,शशि में जब तक शीतलता है

जब तक बादल में गर्जन है, धरती पर जैव विविधता है!

जब तक गिरि के शिखरों से सरिता को मिलता रहे प्रसार,

जब तक तीनों ऋतुओं में धरती बदलेगी अपना श्रृंगार !!

जब वायु में वेग रहे, जब तक लहू में उद्वेग रहे,

जब तक तन में यह प्राण रहे, जब तक साँसो की तान रहे!

तब तक मैं अपने स्वाभिमान पर आँच नही आने दूँगी,

चाहे कुछ भी हो जाए मैं झाँसी तुम्हें नही दूँगी।

रानी के मुख से जब यह, युद्ध वाक्य प्रस्फुटित हुआ,

यही से फिर स्वतंत्रता की अमर क्रांति उदघटित हुआ !

तेईस मार्च सन अट्ठावन में झाँसी का संग्राम हुआ,

एक वीर भारतीय नारी ने खू से लिख दी अमर कथा!!

दत्तक पुत्र को बाँध पीठ वह घोटक पर सवार हुई,

दोनों हाथों तलवार लिए वह शक्ति का अवतार हुई !

देख वीरता रानी की अंग्रेज़ी सेना सिहर गई,

मानो दामिनी के गर्जन से गिरि की चट्टानें बिखर गई।

हाय !नियति की यही चाह वह अपनों के हाथों छली गई,

चारों ओर घिरी दुश्मन से वह मुश्किल में उलझ गई, !

बल से जिसको न हरा सके छल से उस पर फिर वार किया

वह वीर, शेरनी, वीरांगना अमर लोक को चली गई !!

सोचो वह क्षण कैसा होगा वह दिन कैसे ठहरा होगा

धरती कैसे सम्भली होगी अंबर पर क्या गुजरा होगा !

एक अमर कथा की वो जननी आजादी की क्रांति जगा गई

स्वतंत्रता और देश प्रेम का सबको सबक वो सीखा गई !

तो चलो आज इस महापर्व पर उसकी जय जयकार करें,

लक्ष्मीबाई अमर रहे जन गण मन पर अभिमान करें !!

नीरजा बसंती

गोरखपुर, उत्तरप्रदेश