जुदा होने लगा हूंँ मैं सभी एहसास से अब तो

हुए रुसवा जहांँ में हम,वफा करते रहे तब भी।

मिली बस ठोकरें मुझको,पनाहें दी उन्हें तब भी।।

जुदा होने लगा हूंँ मैं,सभी एहसास से अब तो, 

करूँगा मैं दुआ ही बस ,करो कितनी ख़ता तब भी।।१।। 

लगीं चोटें यहांँ इतनी, खुदा भी रो पड़े जैसे।

खता कुछ तो रही मेरी,दिखाएँ दाग हैं ऐसे।।

अकेले का सफ़र है ये,न कोई साथ देता है,

कि ताकत होंसला ही है,इसे मैं छोड़ दूँ कैसे।।२।।

दुआ करते रहो हरदम,महकती ही रहें राहें।

मिले अब जख्म कितने भी,सहूँगा खोल ली बाहें।

पता है ये हमेशा से,वफ़ा दूँ तो वफा मिलती।

दिया ही है सदा मैंने,नहीं दिल में रही चाहें।।३।।

अनामिका मिश्रा (लेखिका ,कवयित्री) 

झारखंड, सरायकेला (जमशेदपुर)

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