पहली ही रात को नटखट,
पायल ने यूँ शोर मचाया,
घर के सब लोगों को,
ना कहे ही सब बताया ।
मैं लाज से पानी हुई,
जब सासूमाँ ने समझाया,
“आवाज़ कितना करती हो”,
ऐसा कहकर मुस्कुराया।
कुछ ही दिनों में थोड़ी शरारतें,
हमने भी सीख डाली,
धड़कनें बढ़ाने लगे साजन की,
सुना पायल की वाणी।
बस ऐसे ही सँभलते गिरते,
दो से हम चार हुए,
आज काम एक नहीं,
बढ़कर कब हज़ार हुए।
आज पायल की छन छन मेरी,
बच्चों के अलार्म का काम करती है,
मेरा रूप सँवारती ज़रूर है,
उनको आज भी घायल करती है।
मेरी पायल का एक एक घुँघरू,
कभी बजना ना रुकता है,
इस सुबह से रात के कलरव में ही,
मेरे प्रेम का सूरज उगता है।
अपर्णा
मुंबई