लूट खसोट मची हुई है
सत्ता के गलियारों में ।
मंहगाई सिर ताने खड़ी है
हर दुकान और बाजारों में ।
झूठ फरेब फल फूल रहा है
इन्सानो को निगल रहा है ।
झूठ फरेब की चका चौंध मेें
न कोई किसी को समझ रहा है ।
झूठ लूट फरेब मक्कारी का
कदम कदम पर डेरा है ।
व्यापार यहां चल रहा है ।
न कोई तेरा न मेरा है ।
छोटा बड़े सभी फरेबी
यहाँ पर पनप रहा है ।
झूठे लोगों की बातों में
सच्चा इंसान फंस रहा है ।
लूट खसोट मक्कारी बाले
हर जगह ही मिल जायेगे ।
सारा सच इन्सानो के बीच में
भेड़िये यहां पर मिल जायेगे ।
दया धर्म न मानवता है
लूट लूट कर खा जाते हैं ।
मानवता इन्सानियत को
घर की खूटी पर टांग देते है
हर जगह लूट के धन्धे में
अपनी रोजी रोटी चलाते है ।
उसी में पनपते पलते है ।
सभी को उल्लू बनाते है ।
अपना उल्लू सीधा करनेे
भाई से भाई को लड़ाते है ।
उनके झूठ और सच को
सभी समझ नही पाते है ।
झूठे लोग कदम कदम पर
ऐसे ही फल फूल रहे है ।
सारा सच है सच्चे इंसानों
को आये दिन ही लूट रहे हैं ।
अनन्तराम चौबे अनन्त
जबलपुर म प्र / 3001/