हाड़ी रानी

राजपूती भूमि की गाथा 

     सुन लो करती आज बखान।

 वीर प्रस्विनी धरती माँ का

करना है मुझको गुणगान ||

क्षत्रियों-वीरों के जैसे ही,

मातृभूमि हित हो बलिदान।

क्षात्र धर्म क्षत्राणियों ने भी,

निभा बचाया इसका मान ||

आओ सुनाती हूँ मैं कहानी 

 हाड़ी रानी बड़ी महान।

बड़ी वीरांगना बलिदानी,

थी क्षत्राणी जाति की शान ||  

दुर्गा जैसे धरे स्वरूप।

रूप –लावण्य मय थी रानी

लक्ष्मी जैसी ताव अनूप।

नगर सलूंबर सजा हुआ था 

शहनाई का होता नाद।

सज धज के बैठी थी रानी,

मिलन घड़ी का था आल्हाद ||

इधर इक दरबान था आया

संदेशा राजा का साथ।

संकट में यह देश पड़ा है,

पढा सन्देशा लेकर हाथ ||

सौलह श्रृंगार किए रानी 

भरमाया चूंडा सरदार।

 भले फूल सी कोमल रानी,

क्षत्राणी थे भाव-विचार ||

थाल सजा कर लाई रानी 

बतलाया पति को इतिहास।

मातृभूमि प्रेमी थी रानी,

क्षत्रिय धर्म सिखाया खास||

युद्ध भूमि में मिट जाने को,

चूडावत हो गया तैयार।

नव-विवाहिता कैसे छोड़े,

 सोंच-सोंच चिंतित सरदार।

पहनो आज क्षत्रिय का बाना,

तिलक करूँगी मंत्रोच्चार।

द्वार खड़ी प्रतीक्षा करूँगी,

सिंह की तुम भरना हुँकार।

भुला नहीं पाया रानी को,

विरहाकुल होकर सरदार।

रणभूमि में लड़ूँगा कैसे,

रानी का ही करे विचार।

जाओ रानी से मिल आओ,

हरकारा! लेके सन्देश।

मेरा हाल बता रानी को,

लिए निशानी आना शेष ||

पा संदेसा हरकारे से 

रानी जी चिंता में डूब।

सोंच रही शत्रु से कैसे,

लड़ पाएँगे ऐसे खूब?

 जौहर करके कभी, कभी तो

संतानों का कर बलिदान। 

और सती होकर के भी तो

रखे राजपूतानी शान।

ठहरो भाई! बोली रानी,

देती अंतिम तुम्हें निशान।

थाल सजा कर उनको देना,

क्षात्र धर्म का हो सम्मान।

उन्नत माथा करके रानी,

किया काम जो गाते भाट।

मातृभूमि हित निज हाथों से,

उसने दी अपना सिर काट।

अमर हो गई यही कहानी 

हाड़ी रानी जिंदाबाद।

राजस्थानी माटी में है,

गाथा वीरपौध की खाद।

स्वाभिमान की है यह गाथा,

हाड़ी रानी का इतिहास।

मातृभूमि पर मर मिटने का,

कथा कहे धरती आकाश।

                             मीनाक्षी