दान

दान किये से धन बढ़े, शिक्षा  बुद्धि विवेक।

सतसंगति से सबबढे़,मिलती खुशी अनेक।।

विद्या दान सबसे बड़ा, बढ़ता जिससे ज्ञान। 

बिना  ज्ञान  सब  सून है, ज्ञान बढे़ से मान।। 

अन्न  दान  भी  श्रेष्ठ  है, भरता  निर्धन पेट। 

पेट जीव  को  हो नहीं, करे  नहीं  आखेट।। 

चार  तरह  के मनुज  हैं, कहें लोग संसार। 

मक्खीचूस  खडू़स  हैं, दानी अरू दातार।।

मक्खीचूस कहते उसे,करे नहीं उपभोग।

खुद खाए नहिं खान दे ,देखें तरसें लोग।।

कृपणलोग कहतेउसे,खुदकरता उपभोग। 

औरों को नहिं देसके,बहुत दुखद संयोग।। 

दानी कहते  हैं उसे, करता खुद उपभोग। 

औरों को भी दान दे, यही सुखद  संयोग।। 

सबसे  उत्तम  लोग हैं, कहे जिसे दातार। 

खुद  भूखा  रह दान  दे,विरले हैं संसार।। 

धनकी केवल तीनगति,भोगदान  यानाश। 

चौथी गति होती नहीं, बढे़ मोह की पाश।। 

दुनियाँ  में  दानी  हुए, सारे  बहुत अनेक।

दानीदधीचि सा मिला,नहींकिसी कोएक।। 

भोग करो अरु दान दो, होगा सुन्दर काज। 

दोनोंमें कुछ नहिं किया,होगानाश अनाज।।

अंग  दान  संसार  में, करते  हैं  जो  लोग।

भगवन के दरबार में, मिलता सुन्दर भोग।। 

रक्त दान महिमा बड़ा,जाने सकल जहान। 

रक्त दान जो नर  करे, होता बहुत महान।। 

रक्त दान से होत  है, जीवों  का कल्याण। 

मृत्यु निकट जो जा रहे,वापस पाते प्राण।। 

समयदान का मूल्यजो,समझ सके नरजेष्ठ।

होता वही महान जन, कहते सबसे  श्रेष्ठ।।

महेन्द्र सिंह राज 

मैढी़ चन्दौली उ. प्र.