आहटे

आहटें जो छुपी हैं 

बंद दरवाजों के पीछे,

राज बने वो ख्वाब

समय ने जो थे  सीचे। ञ

किसी के दामन में 

पेवन की कहानी है,

तो किसी के पांव के 

दरारों को छुपाती है ।

लिपटे हुए  कुछ 

यादों के खजाने हैं, 

तो कुछ परतों को 

बरसों से सहेजें हैं।

हर चीज किसी के 

याद की निशानी है,

पन्ने दर पन्नों को

कुरेदना बेमानी है।

हृदय के घाव पर पड़े 

हुए छाले हैं ,

निशान टूटे अरमानों के 

भी संभाले हैं।

आधे अधूरे उन 

सपनों को छोड़कर,

आगे बढ़ चले इस 

घर से निकल कर।

पलट कर आने की 

फुर्सत कहां मिली?

जिंदगी की मसरूफियत से

इजाजत कहां मिली?

आज पड़ा है वीरान 

जो कल बसेरा था ,

वो किसी समय यहां पर 

भी सवेरा था।

बजती थी कभी 

किसी के पायल 

की छन छन,

याद बन के रह गई 

अब वह पल पल।

डाॅ0शीला चतुर्वेदी, ‘शील’

एस0आर0जी0,देवरिया-

उत्तर प्रदेश