राजेंद्र बज
राजनीति में जब इधर वाले की उधर वाले से या उधर वाले की इधर वाले से पार्टनरशिप हो जाती है, तमाम काले-धोले कारनामे सफेदी की चमकार से ‘ झकाझक ‘ हो जाते हैं। या कि यूं मानिए कि एक प्रकार से भ्रष्टाचार की ‘ साझा संस्कृति ‘ विकसित होने का मार्ग प्रशस्त हो जाया करता है। दरअसल ऐसी पार्टनरशिप से कैसे भी उल्टे-सीधे आड़े-तिरछे धंधों का बीमा हो जाता है। वैसे भी आजकल की राजनीति तमाम अनिश्चितताओ से भरी पड़ी है। हर एक चुनाव में कुछ जाने-पहचाने चेहरे सत्तापक्ष और प्रतिपक्ष के सिरमौर सिद्ध हुआ करते हैं। ऐसे में सत्ता के सिंहासन पर ‘ ये ‘ बैठे या ‘ वे ‘, कहीं किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता।
कौन सा चेहरा कैसा स्वरूप लेगा ? यह तो खैर हर छोटे-बड़े चुनाव में जनता जनार्दन ही तय किया करती है, लेकिन यह निश्चित है कि उसके सम्मुख कुछ विकल्प होते हैं – इन विकल्पों में से ही उन्हें चयन करना पड़ता है कि कौन इधर का होगा और कौन उधर का होगा। ऐसी स्थिति में स्वाभाविक है कि ‘ व्यापारिक बुद्धि ‘ का इस्तेमाल करते हुए अपने-अपने काम धंधों का बीमा करा लिया जाए। फिर चाहे नागनाथ हो या सांपनाथ ? पार्टनरशिप की बीन से दोनों को ही बस में किया जा सकता है। ऐसी पार्टनरशिप से आम जनता के बीच यह संदेश भी जाता है कि आप व्यक्तिगत तौर पर किसी के प्रति कटुता के भाव नहीं रखते।
अन्यथा बीते दौर में तो इधर वाले की उधर वाले से और उधर वाले की इधर वाले से दुश्मनी के ही नजारे देखने को मिला करते थे। जैसे-जैसे जनता जनार्दन में जागरूकता आ रही है वैसे वैसे वह बारी-बारी से इनको और उनको दोनों को कुछ करने का मौका देने में विश्वास करने लगी है। यानी कि अब ऐसा नहीं रहा कि सत्ता वाला हमेशा सत्ता में बना रहेगा या किसी का सत्ता से पत्ता कटा हुआ है – तो कटा हुआ ही रहेगा ! अब तो आम नागरिक भी अच्छे-अच्छे को पटखनी देने में विश्वास करने लगे हैं। कभी वे अच्छे-अच्छों को हरा बैठते हैं और कभी गुमनाम को नामदार बना दिया करते हैं। सचमुच यही लोकतंत्र की खूबी है कि जनता को गिराने और उठाने के खेल में रोमांच का अनुभव होता है।
बीते दौर में आदमी की आयु लगभग 100 वर्ष की मानी जाती थी। लेकिन अब 60/70 तक आते-आते आदमी बेदम हुआ जाता है। इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव यह पड़ता है कि अब आदमी के पास कम समय में बहुत कुछ करने का काम होता है। दूसरी ओर हर कोई जोखिम से बचना चाहता है। वैसे यह भी स्वाभाविक है कि काम धंधों का यदि बीमा हो, तो संभावित जोखिम के विरुद्ध संपूर्ण सुरक्षा प्राप्त की जा सकती है। वैसे तो बीमा के भी अलग-अलग प्रकार हैं, लेकिन ‘ राजनीतिज्ञों की पार्टनरशिप ‘ अपने आप में एक ऐसा बीमा है जो चीत हो या पट , हर एक बाजी को अपने हाथ में रखने में सहायक होता है। कुल मिलाकर अब जमाने को समझ आ गई है कि ‘ सौजन्य से सभी प्रसन्न रहा करते हैं ।’