नवल प्रात की,
यह नवल रश्मियां,
पग-पग-प्रिय को चूमे।
मलय समीर के,
झोंके हर पल,
उनके अभिनंदन में झूमे।
सदा सुनाती रहूं गीत
बनकर जीवन की रागिनी,
प्रिय!कटे वन्धन सारे,
जो इर्द-गिर्द तेरे घूमे।
धरती से मिलने को आतुर,
गगन बढाये हाथ
आज पग छूने।
अरूण प्रभा आ
आकर मग मे
अधरो पर मोती चूने।
समय सिन्धु की
सेज है सूनी
धरती की वह पीर न सुने।
अंजना मिश्रा,
भाटपाररानी-देवरिया,उत्तर प्रदेश