संवाद

तन्हाई में करता है मन,

 मुझसे ही संवाद कई।

कह जाता है अक्सर अनकही, 

मुझसे ही वो बात क‌ई ।

संग बीती है मन के मेरे,

मुझसे ही अब बात क‌ई ।

सुनती है अब धड़कन भी ये, 

मुझसे ही अब बात क‌ई ।

संभल न पाए उस पल मेरे ,

मुझसे ही जज्बात क‌ई ।

धड़कन की लय करती है ,

धड़कन से संवाद क‌ई ।

छुपा के रखता है वो दिल में ,

अपने ही जज्बात क‌ई ।

करती हूं संवाद सदा मैं,

दिल से दिल की बात क‌ई ।

लिपट के आती है हवाओं में ,

यादों की सौगात कई ।

ठहर सी जाती रूह में वो ,

धड़कन की रफ्तार कई ।

दिल के स्पंदन से करती,

धड़कन फिर संवाद कई।

तनहाई में करता है मन ,

खुद से ही संवाद क‌ई ।।

पूनम शर्मा स्नेहिल

उत्तर प्रदेश गोरखपुर