प्रेम प्रीति पुरातन रामचरितमानस मैं

हाड़ कपाती ठंडक का मौसम जनवरी खत्म गुनगुनी धूप की फरवरी से प्रारंभ होता है फागुन का महीना प्रेम  का महीना वैलेंटाइन डे का महीना बसंत पंचमी का महीना फगुनहट का महीना जो कि आज से प्रारंभ होता है इसलिए आज विचार करते हैं भगवान राम ने बसंत का उत्सव सीता जी के साथ कैसे मनाया था ।पुरातन प्रीत 

देखियेकि कैसे श्री राम और माता जानकी जी एक दूसरे के लिए व्यग्र हैं फूल लेने के बहाने राम जी सीता जी को चारों ओर खोज रहे हैं तू सीता जी भी मृग के सुकुमार छौनो को देखने के बहाने पलट पलट कर राम जी के दर्शन कर रही हैं।

देखन मिस मृग बिहग तरु फिरइ बहोरि बहोरि  

  निरखि निरखि रघुबीर छवि बाढ़इ प्रीति न थोरि 

    अलौकिक दिव्य  प्रेम की  पराकाष्ठा देखिए सीता जी राम जी को देखने भी चाहती हैं और  मर्यादा भी निभाना चाहती हैं  इसलिए  धीरे से  नयन  खुलती हैं  और सामने  सिंह के समान  ओजस्वी रघकुल के  दो सिंहों को देखती है तुलसीदास जी लिखते हैं

सकुचि सीय तबनयन उघारे

 सन्मुख दोउ रघु सिंह  निहारे

  इतनी कठिनाई से जिस राम की छवि के दर्शन हो पा रहे हैं वे राम  जी फिर गायब न हो जाए इसलिए सीता जी ने राम को अपने हृदय में स्थापित कर लिया और नेत्र के पलकों को नीचे गिरा कर जैसे दरवाजा बंद कर लिया हो और राम को तंज कस रही हो 

            लोचन मग रामहिं उर आनी

             दीन्हे  पलक कपाट सयानी

ऐसा ही कुछ श्रीराम ने भी किया एक दूसरे को दर्शन देने के बाद जब काफी समय व्यतीत हो गया और राम को यह लगा कि अब जानकी दी जाने वाली है तब  उन्होंने परम प्रेम से पगी हुई स्याही बनाई और उससे अपने हृदय में जानकी जी का चित्र स्थापित कर  लिया। इस तरह यहा गोस्वामी तुलसीदास जी ने स्पष्ट कर दिया इस अलौकिक और दिव्य प्रेम में कशिश दोनों ओर से बराबर लगी हुई है 

जय सियाराम 

जय जय सियाराम

अरुण कुमार त्रिपाठी

 गोमतीनगर लखनऊ