जब कोई स्त्री प्रेम में होती है

भूल कर खुद का वजूद प्रियतम से समां जाती है, हो 

जाती है न्योछावर उस पर जब कोई स्त्री प्रेम में होती 

है।

जब पाती है सान्निध्य वो अपने प्रीतम का, 

खिल के कली सी बहार हो जाती है,

होले से जब करता है स्पर्श  वो उसे,

तो तन-मन उस पर वो लुटा देती है, हां जब कोई स्त्री

 प्रेम में होती है।

 सांसों से टकराती जब सांसें उसकी मदमाती,

नशे में झूमती बेसुध सी हो जाती है वो,

बेशक है वो शमां, जलते हैं परवाने उस के लिए लाखों,

मगर जब छूता है उसे वो मोम सी पिघलने लगती है,

हां जब कोई स्त्री प्रेम में होती है।

दिल को निकाल कर पुरुष के कदमों में रखती है वो।

 पुरूष की आंखों में जब देखती है शरारत,

उफ़्फ कयामत उसके दिल पर ढा जाती है, तन-मन 

तब वो उस पर लुटा देती है, हां जब कोई स्त्री प्रेम में 

होती है।

खुद को बांध देती है उससे अनदेखी एक डोर से,

कच्चे धागे की उस डोर में अपनी सांसों के मनकों को 

पिरो कर धड़कनों की वो माला बनाती है, हां जब कोई 

स्त्री प्रेम में होती है।

हां जब नारी प्रेम में होती है, हर रूप एख्तियार करती 

है पुरुष के लिए,कभी मां, कभी बीवी कभी प्रमिका तो

 कभी एक वेश्या का रूप भी धर लेती है,

बस वो प्रेम ही तो चाहती है, केवल प्रेम में जीती है, प्रेम 

में मरती है, हां जब कोई स्त्री प्रेम में होती है।

प्रेम बजाज 

जगाधरी ( यमुनानगर)