नहीं उम्मीद रखना तुम,जख्म बड़ा गहरा पाओगे।
गैर तो गैर होंगे पर, तुम अपनों से छले जाओगे।
मुकद्दर में लिखा उसको मिटा सकता नहीं कोई,
छोड़ दो रोज की तकरार ,वरना तुम पछताओगे।
कोशिश जो कि तुम ने थोड़ी,तो बेशुमार पाओगे।
अभी थोड़ी ही गुजरी ,थोड़ी आसां कर जाओगे।
एक तारा टूटने से आसमां कभी खाली नहीं होता,
वक्त के साथ जो चले,तो तुम परचम लहराओगे।
रखा है जिसने जिंदा ईमान,स्वाभिमान बचाओगे।
बंधे जो तुम रहे उम्मीद, घायल खुद कर जाओगे।
नहीं भरते वो घाव कभी भी,जो बार-बार रिश्ते हैं,
अपनेपन का लेप लगा ,तो फिर ना पछताओगे।
रखी उम्मीद जो खुद से, खाई गहराई ना पाओगे।
ना होगी दूरी अपनों में, सबको अपना बनाओगे।
जवाब तो सारे आज बुन चुकी है कलम वीणा की,
जिंदा शब्द है उम्मीद,बस रख खुद जिंदा पाओगे।
वीणा वैष्णव रागिनी
राजसमंद राजस्थान