माँ का आशीष

——– ——-

जीवन का ये जो डगर है

बहुत ही कठिन है

जो यहाँ तक का सफ़र हैं 

माँ तेरे ही आशीष का फल है ….

हमने माँ कह कर जो पुकारा

दुःख तुमने सारा हारा हैं 

कितनी कठिनाइयों के बावजूद भी

तुमने नाज़ों से हमें पाला हैं…..

उम्र ही क्या थी, जीवन साथी 

का साथ था  छुटा तुमसे 

तकलीफ़ों के साये में भी

बड़े प्यारा से संवारा है हमें…..

भगवान को तो भुल भी जाऊँ 

 पर तुझे  कैसे  मैं भूलूँ माँ 

तक़दीर तेरे साये में पलती हैं 

तुझसे मैं कैसे रूठूँ माँ…..

हाथ हमेशा थाम कर रखना

रोशन तुझसे जहाँ हैं सारा

तुझ बिन कुछ दिखे ना मुझे 

जीवन में होगा बस अंधियारा…… !!

रीना अग्रवाल , सोहेला (उड़ीसा)