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सितम गर्मी का
कुछ यूं बढ़ा,
सूरज की तपिश बढ़ी,
बदले उसके तेवर।
जाने क्यों ?
इतना गरम हुआ सूरज,
धरा पे सूरज ने
रौशनी के साथ,
बरसाया आग।
हो रहा जन -जीवन
अस्त व्यस्त,
हो रहे सब
गर्मी से त्रस्त।
सुनी पड़ी,
दोपहर में गालियां,
सुख रहे छोटे पोखर,
लग रही खामोश सी
लहराती नदियां।
इधर उधर उड़ रही
प्यासी चिड़ियां,
डालो सब अपने
छतों पे ,
पात्रों में पानी,
प्यासी न रहे नन्हीं चिड़ियां।
सविता राज
मुजफ्फरपुर बिहार