खड़े हो द्वार पर तुम
हर पल मैं यही सोचती
निगाहें हैं सूनी हर पथ
पर तुम्हें ही खोजती
मन के दीप जलते हैं
तुम्हारी यादों के सहारे
कैसे बितायें हम प्रिय
व्याकुल क्षणों को
प्रतीक्षा में तुम्हारे।
प्यार में भीगते हुए बरस
भी पल में बीत जाते हैं
पल भी अब तो भारी हैं
जो बरसों में न समाते हैं
धडकनें मेरी चल रही है
आश्वासन पर ही तुम्हारे
कैसे बितायें हम प्रिय
व्याकुल क्षणों को
प्रतीक्षा में तुम्हारे ।
तड़पाता नहीं क्या कभी
तुम्हें मेरा यूं तड़पना
प्रतीक्षा में हूँ तुम्हारी
लौटकर तुम जरूर आना
दूर हो तुम पर कल्पना
में पास ही हो हमारे
कैसे बितायें हम प्रिय
व्याकुल क्षणों को
प्रतीक्षा में तुम्हारे ।
● पुष्पा श्रीवास्तव , डूंगरपुर (राजस्थान )