आज थोड़ा जी भरकर देखना है तुमको
शेष कभी शाम ढ़ले मिल लूँगी फिर कभी,
आज तेरी गहरी सी आँखों में डूब जाऊँ
चाहत की चाशनी में नहाऊँगी फिर कभी..
करनी है गुफ़्तगु चंद ज़रा लफ़्ज़ों में ढ़ेर
सारी बातों में खो जाऊँगी फिर कभी,
सोना है बाँहों के हल्के से तकिये पर
सीने पर सर रखकर सो लूँगी फिर कभी..
करते शरारत यूँ लफ़्ज़ों से खेलना है
हाथ थामें सैर पर निकलूँगी फिर कभी,
आज स्वाद चखना है तेरी तीखी अदाओं का,
हौले से तुम्हारी पीठ पर प्यार लिखूँगी फिर कभी..
झुक ज़रा चूम लूँ भाल की शिकन को लबों को
लबों से चूम लूँगी फिर कभी,जी भरकर जी लूँगी
चुटकी भर संग मिले
उम्र भी काट लूँगी साये में फिर कभी..
इज़हार-ए-इश्क कर रिश्ता तू जोड़ ले
फेरे भी ले लूँगी संग तेरे फिर कभी,
दिल में है जगह मांगे बिखरी ये ज़िंदगी,
रानी बन तेरी मैं हल्का सा हक चाहूँ सोचूँगी फिर कभी..
बैठ ज़रा पास मिली घड़ियों को जी ले हम,
वक्त की क्षितिज पर मिल लेंगे फिर कभी,
गुज़ारिश है नाचीज़ की अपना तू मान ले
मृत मेरी काया का बोझ तेरे कंधे पर आने दे
वक्त ज़रा रख दूँगी फिर कभी..
भावना ठाकर ‘भावु’ बेंगलोर