व्यंग्य 

तेरा तुझको अर्पण

“अरे भोलू सुना तूने,कल नएओवर ब्रिज का लोकार्पण  नेताजी ने कर दिया। सब आश्चर्यचकित थे कि लोकार्पण के लिए कोई बड़ा चेहरा क्यों नहीं।और फिर हम सब कब से मांग कर रहे थे लेकिन कहीं कोई सुनवाई ही नहीं हो रही थी ।”

“अरे दादा, यदि नेताजी कल लोकार्पण नहीं करते तो विपक्षियों ने पूरी तैयारी कर रखी थी। वे सारी क्रेडिट अपने झोले में डालने की फिराक में थे।उन्होंने अल्टीमेटम भी दे दिया था।वे फीता काट देते और नेताजी की किरकिरी हो जाती।”

“लेकिन भोलू नेताजी ने इतने दिन क्यों लगा दिए।जनता को कितना कष्ट उठाना पड़ा। कितना घुमकर आना पड़ता था।इस रास्ते पर से होकर कितने कालोनी वासी और गांवों के लोग गुजरते थे।पहले रेलवे क्रासिंग होने से रेलवे वाले परेशान करते थे,अब चार साल तक स्थानीय प्रशासन ने परेशान कर दिया। जो काम दो साल में हो जाना था,उसे चार साल में पूरा करवाया और वह भी आधा-अधूरा।”

“दादा, नेताजी तो चाह रहे थे कि मुख्यमंत्री खुद आकर लोकार्पण करें और कोई नई घोषणा भी कर जाएं ताकि ओवरब्रिज के साथ नए काम को भी आने वाले चुनाव में भुना सकें लेकिन विपक्षियों की टांग खिंचाई ने पलीता लगा दिया।”

“लेकिन भोलू, बेचारे विपक्षी भी क्या करें।जनता को कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ा इन दिनों में।पुल का काम कितनी धीमी गति से चला है मालूम है तुझे।”

“हां दादा, बात तो सही है लेकिन इसमें बेचारे नेताजी क्या करते। ठेकेदार ही ठंडा निकला। कितना धीरे धीरे काम किया।””बिल्कुल ग़लत बात है। ठेकेदार क्या करें।जिनको अतिक्रमण हटाकर और रास्ता क्लियर करके देना था,पहले तो वे सोये रहे, फिर बिजली के खंबे हटाने वालों की ढीलमपोल। विभागों में तालमेल ही नहीं। सरकारी काम सरकारी तरीके से करने की आदत पता नहीं कब सुधरेगी।”

“दादा,अब जब लोकार्पण हो ही गया है तो आपने इस पुल का उद्घाटन किया कि नहीं!”

“अरे बस भोलू ,अब कुछ कहना ही बेकार है। जल्दबाजी में लोकार्पण तो कर दिया लेकिन अभी लाइटिंग बाकी है। संकेतक लगाए नहीं है। ओवरब्रिज की डिजाइन भी माशाअल्लाह!कभी देखा है किसी पुल पर अंधामोड़। मैं तो रात में पुल पर से गुजर रहा था और सामने से इतनी तेजी से कार आई कि कुछ समझ ही नहीं पड़ी।टकराते-टकराते बचा। फिर समझ में आया कि यह हमारे देश के अभियांत्रिकी महाविद्यालय से निकले होनहार की डिजाइन और निर्माण कला का नमूना है।”

“फिर भी दादा, हमें नेताजी का शुक्रगुजार तो होना ही चाहिए कि नहीं मामा से काना मामा तो मिल गया।और फिर ओवरब्रिज देकर जनता पर उपकार भी तो किया है।”

“हां भाई, उपकार तो किया ही है तेरा तुझको अर्पण करके।भला उनकी पाकेट से क्या लगा! “

डॉ प्रदीप उपाध्याय,16,अम्बिका भवन,उपाध्याय नगर,मेंढकी रोड,देवास,म.प्र.

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