जी  चाहता  है..

1. जी चाहता है 

तुम्हारी शांत – खामोश निगाहों

की झील में उतर कर 

 इनसे दर्दे – मोती  समेट लूं..

 क्योंकि ये आंखें… निगाहें 

मुस्काती बहुत है

– लगता है 

गमों को छुपाती बहुत हैं

 क्योंकि तुम्हारी आंखें मुस्काती बहुत हैं

 लगता है गमों को छुपाती बहुत है

2 ख्वाइश 

तेरे गमों को यूं अपनी रूह 

में उतारा हुआ है मैंने

कि – मेरी आंखों में 

अटकी हुई कुछ हसरते 

मेरे दिल में पलती-

सहमी हुई ख्वाहिशें

रात की तरह ही 

निकल पड़ती है ढूढ़ने – सकून l

तारों की महफिल 

चांद के होते हुए भी 

रह जाती है तनहा

और देखती रहती हैं 

आसमान से

टूटते – गिरते हुए

हसरतों के तारों को…!

पर – इन्होंने ही सिखाया है 

मुझे – तुम्हारी एक ख्वाहिश 

पूरा करने के लिए

सौ बार टूट कर बिखर जाना

3. मत आंकना..!

आया है वह मेरे पास

अंधेरे भर तक ऐ भोर..!

 मत आंकना

अपने माथे पर

सूरज की सुनहरी बिंदिया

 डॉ. सुनीता शर्मा

संप्रति : अध्यापन, ऑकलैंड (न्यूजीलैंड)