〰️〰️〰️〰️〰️
तुम्हें जब ढूँढती हूँ
अपने आस पास मैं
पलके बंद
कर लेती हूँ
एक विश्वास से मैं
किनारे- किनारे
बिन साये के
कँहा तक चलूँगी मैं
तन्हा तुम्हारे बिन
कब तक जलूँगी मैं
इन आइनों से बचकर
यूँ लोगों से छिपकर
अपने ही दिल को
कँहा तक छलूँगी मैं
बहुत डर गई हूँ
इस आभास से मैं
दिल में प्यार यूँ ही
छिपाये क्यूँ होठ
तुम्हारे खुल न पाए
हज़ारों की भीड़ में
हम केवल
क्यूँ तुम्हे ही
समझ नही पाए
बहुत बात कर चुकी हूँ
अपने आप से मैं
हज़ार दर्द इस दिल
में बसाये बसाये
कोई वफ़ा को
कँहा तक निभाये
तोहफे भी वापिस आये
खत भी मैंने जलाये
दिल के रिश्ते भी
मेरे हुए पराये
बहुत मिल गयी हूँ
एकांत से मैं
अब तुम्हें पाना
चाहती हूँ मैं
तुम्हें जब ढूँढती हूँ
अपने आस-पास में
पलके बँद कर लेती हूँ
एक विश्वास से मैं।
●डॉ.योगिता जोशी ‘अनुप्रिया’
झोटवाड़ा, जयपुर (राजस्थान)