भोपाल। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय की ‘लिखन्दरा प्रदर्शनी दीर्घा’ किसी एक जनजातीय चित्रकार की प्रदर्शनी सह विक्रय का संयोजन शलाका नाम से प्रतिमाह किया जाता है। इसी क्रम में भील समुदाय की युवा चित्रकार शांता भूरिया के चित्रों की प्रदर्शनी का संयोजन किया गया है। यह 25वीं चित्र प्रदर्शनी 30 मई,2022 तक निरंतर रहेगी। युवा चित्रकार शांता भूरिया के चित्रों में बस यात्रा, फलों से लदा वृक्ष, वृक्ष एवं उल्लू, बेलगाड़ी ,वार, महुआ एकत्र करती महिलाएं, पिठोरा देव, दो मोर, दो तितलियां, फल खाते पक्षी, हिरण जोड़, हाथी एवं वृक्ष, ऊंट सवार, कोरोना, भगोरिया मेला आदि विषय पर तैयार चित्र प्रदर्शित किये गये हैं। प्रदर्शनी में उनके द्वारा तैयार करीब 26 चित्रों को प्रदर्शित किया गया है।
चित्रकार शांता भूरिया भील बाहुल्य क्षेत्र के ग्राम झाबुआ में जन्मीं हैं, जिन्हें कला विरासत में मिली है। शांता भील समुदाय की लब्धप्रतिष्ठित चित्रकार पद्मश्री भूरी बाई की संतान हैं। चित्रकार शांता माँ भूरी बाई के साथ उनके रचना कर्म में सहयोग करतीं और चित्र बनाना भी सीखती थीं। वरिष्ठ कलाकारों का भी इनके घर में आना-जाना लगा ही रहता था, जिन्होंने शांता को बचपन से ही चित्रों के प्रति गहरे आकर्षण के साथ ही आकारों को गढ़ने के लिए भी प्रेरित किया। कम ही आयु में शांता का विवाह हो गया और वे शहर से अपने ससुराल गाँव चली गयीं और चित्रकर्म पीछे छूट गया। बहुत लम्बे समय तक शांता ने क़ागज एवं रंगों को नहीं थामा, घर-गृहस्थी पारिवारिक जिम्मेदारियों में व्यस्त रहीं। जिस समय जीवन की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति भी बमुश्किल ही हो पा रही थी, तब दोनों पति-पत्नी ने परिवार के कहने पर शहर का रूख किया और संतानों के बेहतर भविष्य के लिए फिर दोबारा गाँव नहीं लौटने का निर्णय लिया। पति विजय ने घर गृहस्थी सुचारू चलाने के उद्देश्य से जहाँ जो काम मिला किया, अनेक छोटी-मोटी नौकरी भी की। शांता परिवार सँभालने के साथ-साथ माँ भूरीबाई को उनके चित्रकर्म में सहयोग करने लगीं। धीरे-धीरे सहयोग करते हुए स्वयं के लिए भी चित्र बनाना आरम्भ किया, जिससे आय में कुछ वृद्धि हो सके और चित्र बनाने में अथवा कला के क्षेत्र में संघर्ष करने के दौरान पति का सम्पूर्ण सहयोग रहा। यह सिलसिला चलता रहा और शांता भी भील जनजातीय कथाओं के अंकन करने लगीं। माँ भूरीबाई इनकी प्रथम गुरु हैं और इनके बनाये चित्रों में उनकी चित्रशैली का भी बहुत प्रभाव दिखता है। वर्ष 2005 से शांता ने मुम्बई, नयी दिल्ली , चंडीगढ़, बैंगलोर, भोपाल, इंदौर सहित देश के अनेक शहरों में अपने चित्रों को प्रदर्शित करना एवं कार्यशालाओं में भागीदारी करना आरम्भ किया। भील समुदाय की एक सम्भावनाशील चित्रकार के रूप में शांता भूरिया विगत 18 वर्षों से सतत् चित्रकर्म में संलग्न हैं।